________________ चरितकाव्य 145 प्रमाण मोक्षप्राप्ति के लिए जैनधर्म में ज्ञानोपासना को अत्यन्त आवश्यक बतलाया गया है। पदार्थो के ज्ञान की उत्पत्ति दो प्रकार से होती है - प्रमाण एंव नय७३ / मति, श्रुति, अवधि, पर्याय एंव केवल ज्ञान की जानकारी प्रमाण द्वारा ही होती है। इन प्रमाणभूत ज्ञानों के द्वारा द्रव्यों का समग्ररुप में बोध होता है। चरितकाव्यों से प्रमाण के दो प्रकारों प्रत्यक्ष एंव परोक्ष की जानकारी होती है३७४ / प्रत्यक्ष का तात्पर्य इन्द्रिय प्रत्यक्ष से है। शब्द उपमान, एंव अनुमान को परोक्ष प्रमाण माना गया है क्योंकि इनसे परोक्ष पदार्थों की जानकारी होती है। इन्हें श्रुतज्ञान से सम्बन्धित माना गया है। नय ___ पदार्थो के अनन्त गुण एंव पर्यायों में से प्रयोजनानुसार किसी एक गुण धर्म के प्रतिपादन को नाम नय है। नयों द्वारा वस्तु के विविध गुणांशों का निरुपण भी सम्भव है। चरितकाव्यों से द्रव्यार्थिक एंव पर्यायार्थिक नयों की जानकारी होती है | द्रव्यार्थिक नय ___ वस्तु का वह धर्म जिससे वस्तु के विविध परिणामों के बीच एकता बनी रह सकती है उसकी संज्ञा द्रव्यार्थिक नय है। नैगम, संग्रह, एंव व्यवहार को द्रव्यार्थिक नय माना गया है क्योंकि इनमें प्रतिपाद्य वस्तु की द्रव्यात्मकता को ग्रहण कर विचार किया जाता है। इसकी पर्यायें गौण होती है३७६ | पर्यायार्थिक नय - देशकाल के अनुसार उत्पन्न होने वाले विशेष धर्मो के निरुपण को पर्यायार्थिक नय की संज्ञा दी गयी है। ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरुढ एंव एंवभूत नय पर्यायार्थिक नय कहे गये हैं क्योंकि इनमें पदार्थो की पर्याय विशेष का विचार किया जाता है। दोनों प्रकार के नयों का समायोजन करने पर नय के सात प्रकार किये गये हैं। दार्शनिकों द्वारा तत्वों के स्वरुप विवेचनार्थ नय के दो अन्य भेद भी किये गये हैं-६ - 1 निश्चय नय, 2 व्यवहार नय। निश्चय नय द्वारा तत्वों के वास्तविक .. स्वरुप एंव इसमें निहित सभी गुणों का निर्धारण होता है। व्यावहारिक नय द्वारा तत्वों .. की सांसारिक उपादेयता पर विचार किया जाता है। चार निक्षेप चरितकाव्यों से ज्ञात होता है कि द्रव्य का स्वरुप विभिन्न प्रकार का होता