________________ अभिलेख 173 में दिये जाते थे-३ | व्यापारियों द्वारा होन्नु नामक सिक्के कर रुप में देने की जानकारी होती है१४ | राजाओं द्वारा, पौणा५. सुवर्ण-तुलाका८६ एंव द्रम्भ-७ नामक सिक्के मन्दिरों को दान में प्राप्त होते थे। लेखों से विवाह एंव मृत्यु पर भी राज्य की आय होने की जानकारी होती है। निसन्तान एंव सम्बन्धीविहीन व्यक्तियों के मर जाने पर उनकी सम्पत्ति राज्य की समझी जाती। बहुधा अभियुक्तों से प्राप्त अर्थदण्ड भी राज्य की आय थी। समय य पर पराजित देशों से भी प्रभूत धन प्राप्त होता था८८ | ग्रामों से राज्य को विशेष आय होती थी। लेखों से ज्ञात होता है कि करों को ग्रहण करने वाला एक अधिकारी होता | जिसे चुंगी अध्यक्ष कहा गया है।९० | जल मार्ग से कर ग्रहण करने वाले को धाट अधिकारी कहा गया है।६१ | इस तरह लेखों में प्राप्त करों के उल्लेखों से ज्ञात होता कि तत्कालीन समय में कर व्यवस्था सुव्यवस्थित रही होगी एंव कर से राज्य को पशष आमदनी होती रही होगी१६२ / राजा द्वारा भूमि, ग्राम, आयात निर्यात एंव स्थानीय विकी पर प्राप्त करों को मन्दिर के निर्माण, प्रबन्ध हेतू, ऋषियों के आहार एंव दीप प्रज्वलित करने के लिए दान देने के उल्लेख प्राप्त होते हैं१९३ | धार्मिक सिद्धान्त __ जैन अभिलेखों से ज्ञात होता है कि छठी शताब्दी से ही महावीर ने जैनमत का प्रचार किया था। अशोक के लेखों में "निगंठ" (निर्ग्रन्थ) शब्द का प्रयोग जैनों के लिए किया गया है।९४ | जिससे ज्ञात होता है कि जैन भिक्षु ग्रन्थि रहित अर्थात् सांसारिक भोग, उपभोग से परे एंव पुनर्जन्म से मुक्त होते थे। जैन अभिलेखों से इस मुक्तावस्था को प्राप्त करने के लिए साधन रुप अनेक सिद्धान्तों की जानकारी होती है। जैन अभिलेखों में जैन धर्म को दो भागों - श्रावक एंव मुनिधर्म में विभाजित किया गया है जिनमें मुनियों को जैन सिद्धान्तों का पालन अति कठोरता से करना होता था। मुनिव्रत __ लेखों से मुनियों द्वारा पाप, अज्ञान एंव मिथ्यात्व से दूर रहने एंव इन्द्रियों का दमन करने की जानकारी होती है। वे इसके लिए वे पंच महाव्रतों - अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एंव अपरिग्रह का पालन करते थे।६५ | मुनि आचार के अन्तर्गत त्रयरत्न, बारह भावनाओं द्वारा चारों कषायों को नष्ट करने के लिए निर्देशित किया गया है।६६ | मुनियों द्वारा बारह प्रकार के कठोर तप द्वारा कर्मो का नाश करने की