Book Title: Jain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Author(s): Usha Agarwal
Publisher: Classical Publishing Company

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Page 196
________________ 178 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास सर्वज्ञाय, ऊँ नमो वीतरागाय आदि से होता है, किन्ही किन्हीं लेखों में मंगलाचरण हिन्दू देवताओं के नामों द्वारा प्राप्त होता है | लेखों से वैष्णव धर्म की अपेक्षा जैनधर्म शैवधर्म के अधिक निकट लक्षित होता है। तन्त्रालोक में शैवधर्म के विभिन्न सम्प्रदायों में अर्हत् (जैन) की गणना की गयी है२४७ / पूर्वमध्ययुगीन राजवंशों द्वारा जैन एंव शैवधर्म को राज्याश्रय देना इस कथन की पुष्टि करता है। होययसल वंशी जैन राजा विष्णुवर्द्धन द्वारा शिव मन्दिर बनवाने की जानकारी होती है४८ | चालुक्यराजा कुमारपाल एंव सोमेश्वर द्वारा शिवमन्दिर के लिए गॉव दान देने के उल्लेख प्राप्त होते हैं२४९ | जैन लेखों में जैन मंगलाचरण के पश्चात् शिव के अनेक नामों से उनकी स्तुति एंव आदिशक्ति पार्वती के साथ पूजा करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं२५० / कदम्बवंशीय राजा ब्राह्मण धर्मानुयायी होते हुए भी जैन धर्मानुयायियों को भूमिदान देते थे५१ | राष्ट्रकूट वंशी अमोधवर्ष प्रमुख रुप से जैनमताबलम्बी था, अभिलेखों से उसके महाकाली के उपासक होने की जानकारी होती है२५२ / इसी प्रकार ब्राहमणों द्वारा जैनों के एंव जैनों द्वारा शैवों के मन्दिर निर्माण कराने एंव दानादि देने की जानकारी होती है२५३ / लेखों से ग्यारहवीं बारहवी शताब्दी में जैनधर्म एंव शैवधर्म के बीच विवाद होने एंव शैवधर्म के विजयी होने के उल्लेख मिलते हैं२५४ | जैन लेखों में शिवमन्दिरों एंव शिव की पूजा का माहात्म्य वर्णन किया गया है२५५ | - लेखों से जैनधर्मानुयायियों द्वारा अन्य पौराणिक देवी देवताओं की पूजा करने, दान देने के साथ ही समन्वयवादी रुप को भी अपनाया गया। जयसिंह के बेलूर शिलालेख से ज्ञात होता है कि अक्खादेवी ने जैन, बौद्ध, एंव अनन्तविधि तथा शास्त्रों के अनुसार क्रियाएं की२५६ / कतिपय लेखों में जिन, विष्णु एंव शम्भु को एक रुप में नमस्कार किया गया है२५७ / पूर्वमध्यकाल में जैनाचार्यों ने जिन, बुद्ध, विष्णु एंव शिव को एक ही तत्व के रुप में माना गया है। इसी कारण विष्णु एंव शिव के सहस्त्रनामों में से कतिपय नाम जिन के लिए प्रयुक्त किये गये है२५८ | जैनाचार्य हिन्दुओं के अवतार वाद से प्रभावित होकर ऋषभ के दस भवों पूर्वजन्मों की कल्पना करते हुए पाये जाते हैं२५६ | जैनविद्या की देवियों में सरस्वती से सहायता प्राप्त करने की जानकारी होती है२६० | गणेश की अट्ठारह भुजावाली एक मूर्ति मिली है जिसे जैनधर्मानुयायी पूजते रहे। चाहमान लेख से राजा अल्हणदेव द्वारा सूर्य की पूजा करने एंव दान देने की जानकारी होती है२६१ | चोल राजा वीर चोल द्वारा तिरुप्पान्मलैक देवता के लिए गाँव की आमदनी दान में देने की जानकारी होती है२६२ | गंगवंशीय राजाओं द्वारा पद्मावती नामक देवी के मन्दिर को चिरकाल तक के लिए पण नामक सिक्के दान देने एंव प्रसन्न होकर देवी द्वारा राज्य एंव तलवार के साथ वर देने की जानकारी लेखों से होती है।६३ | ज्वालिनी देवी एंव कलिदेव की उपासना होने एंव उनके मन्दिर हेतु दान देने के भी उल्लेख प्राप्त होते हैं२६४

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