________________ 182 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास जानकारी होती है२६१ / एक लेख में इसे होगरि गच्छ भी कहा गया है२६२ . लेखों में प्राप्त आचार्यों के नाम से इसे गच्छ की आचार्य परम्परा नहीं दी जा सकती है। चन्द्रक वाट अन्वय लेखों से इस अन्वय के आचार्य नयसेन को सिन्दकुल के सरदार कंच रस द्वारा एंव नयसेन के शिष्य नरेन्द्रसेन द्वितीय को द्रोण नामक अधिकारी द्वारा दान दिये जाने की जानकारी होती है। इन लेखों से इस अन्वय की गुरु शिष्य परम्परा ज्ञात होती है। सेनगण के तीसरे भेद पुस्तक गच्छ का उल्लेख 14 वीं शताब्दी के लेखों में हुआ है। इसी तरह सेनगण का उल्लेख अन्यलेखों में प्राप्त है जो 12 वीं शताब्दी के बाद के हैं। देशीगण और कौण्ड कुन्दान्वय लेखों में देशिय, देशिक, देसिय, देसिग एंव महादेशिगण नाम प्राप्त होता है कि देशिय शब्द देश शब्द से निकला है। "देश" यह एक विशेष प्रान्त रहा होगा। इस देश नामक प्रान्त में रहने वाले साधु समुदाय को देसिय कहा गया होगा जो क्षेत्रीय आधार पर एक प्रमुखगण के रुप में परिणित हो गया। अ-पुस्तकगव्छ या कौण्डकुन्दान्वय ___राष्ट्रकूट राजाअमोधवर्ष के 860 ई० के लेख से इस देशियगण के कोण्डकुन्दान्वय के. आदि आचार्य देवेन्द्र मुनि ज्ञात होते हैं६४ जिनका नामोल्लेख अन्य लेखों में भी प्राप्त होता है। इन लेखों से इस गण की आचार्य परम्परा ज्ञात होती हैं२६५ | लेखों से ज्ञात होता है कि इस गण के आचार्यो के नाम के साथ भट्टार पद जुड़ा है। ये इन आचायों की उपाधि है२६६ | लेखों से ज्ञात होता है कि यह कौण्डकुन्दान्वय पुस्तक गच्छ का विशेषण है क्योंकि लेखों में कौण्ड कुन्दान्वय से पूर्व पुस्तकगच्छ का उल्लेख प्राप्त होता है। सर्वप्रथम मूलसंघ कौण्डकुन्दान्वय का उल्लेख 1044 ई०में प्राप्त होता है२६७ / लेखों में कौन्डकुन्दान्वय को एक गण भी कहा गया है एंव इस अन्वय के आचार्य मौनि सिद्धान्तदेव भटार२८ एंव अन्य तीन आचार्यो - तोरणाचार्य, पुष्पनन्दि एंव प्रभचन्द्र नाम दिये गये हैं.६६ | पुस्तक गच्छ - पनसोगे बलि लेखों से पुस्तक गच्छ के दूसरे उपभेद पनसोगे (हनसोगे) बलि ज्ञात होता है। यह कर्नाटक प्रान्त का एक स्थान था जो देशीगण का केन्द्र था। बाद में क्षेत्रीय