________________ 188 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास मुनिसंघ है वह माथुर संघ है.५७ / लेखों से ज्ञात होता है कि माथुर संघ बाद में काष्ठा संघ का एक गच्छ बन गया। इसी कारण काष्ठासंघ माथुरान्वय नाम से इसका उल्लेख पाते है। लाटवागट गण कच्छपघात वंश के लेखों से लाटवागट गण के आचार्यों के नाम गुरु शिष्य परम्परा रुप में ज्ञात होते हैं। इस गण के विजयकीर्ति द्वारा ही यह लेख लिखा गया५६ | एक लेख में इस गण के महाचार्य देवसेन की पादुकाओं की स्थापना का उल्लेख है जिससे ज्ञात होता है कि ये अपने गण के उन्नत आचार्य थे। यह लेख देवसेन की स्मृति को बनाये रखने के लिए लिखा गया। इसके साथ ही इस लेख में "काष्ठासंघ लाट बागट' ऐसा उल्लेख मिलता है / अतएंव लाट वागठ गण काष्ठासंघ की एक शाखा थी३६० | प्रद्मुम्न चरित काव्य के रचयिता आचार्य महासेन भी इसी शाखा के थे जो परमार राजा मुंज के समय वि०स० 1050 के लगभग हुए२६१। 5 गौड़संघ इस संघ का उल्लेख केवल चालुक्य राजा वद्देग के 10 वीं शताब्दी के लेख में प्राप्त होता है जिसमें इस संघ के आचार्य सोमदेवसूरि के लिए जिनालय बनवाने का वर्णन है३६२ | सोमदेवसूरि के यशस्तिलक चम्पू एंव नीतिवाक्यामृत ग्रन्थ प्राप्त होते हैं। जम्बूखण्डगण सेन्द्रक वंश के अधिराज इन्द्रणन्द द्वारा इस गण के आचार्य आर्यनन्दि को अर्हत्प्रतिमापूजन एंव तपस्वियों की सेवा के लिए कुछ भूमि दान देने की जानकारी होती है।६३ | सिंहदूरगण राष्ट्रकूट राजा अमोधवर्ष के समय के एक लेख से इस गण के आचार्य नागनन्दि आचार्य को कुछ दान देने की जानकारी होती है२६४ ! 6 नबिलूर, नमिलूर व मयूर संघ लेखों में नविलूर संघ का उल्लेख प्राप्त होता है६५ | कहीं कहीं पर इस संघ को नमिलूर संघ.६६ एंव मयूर संघ२६७ कहा गया है। यह संघ वलि व शाखा के समान स्थान विशेष क नाम से अभिहित है।