________________ अभिलेख 171 मंत्रिमंडल मंत्रिमंडल राजा को न्याय एंव शासन संचालन में सहायता देता था१५० / लेखों में मंत्रियों के लिए सचिव एंव महाप्रधान शब्द का प्रयोग किया गया है | होय्यसल राजवंश के लेखों में मंत्री के लिए महामंत्री महासचिव एंव सचिवाधीश शब्द प्रयुक्त हुए हैं१५२ | प्रान्तीय शासक भी अपना मंत्रिमंडल रखते थे। लेखों से मत्रियों की संख्या एंव उनके अधीनस्थ विभागीय कार्यो की जानकारी नहीं होती है। राजनैतिक एंव सांस्कृतिक कार्यो का चिन्तन एंव रक्षण उनका परमधर्म था राजा मंत्रियों से राजकीय कार्यो में सलाह मन्त्रणा करते थे५३ / परराष्ट्र विभाग अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में एक राजा दूसरे राजा से राजनीतिक सम्बन्ध बनाये रखता था। परराष्ट्रनीति का संचालन कार्य भी मंन्त्रियों द्वारा किया जाता था। परराष्ट्नीति विभाग के मंत्री के लिए “महासान्धिविग्रहिक" शब्द का उल्लेख प्राप्त होता है | चालुक्य राजा सोमेश्वर प्रथम के लेख से प्रादेशिक शासन में भी संधिविग्रहिक मंत्री नियुक्त किये जाने की जानकारी होती है।५५ | यह संधि एंव युद्ध का निर्णय करता था जिसमें साम, दाम, दण्ड, भेद इन चतुर्नीतियों का प्रयोग करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। विदेशियों की नीति एंव गतिविधि पर नियन्त्रण रखना इसके कार्यक्षेत्र के अन्तर्गत आता था५६ | सेनाविभाग मंत्रिमंडल में महामंत्री के पश्चात् युद्ध मंत्री का स्थान था जिसे कि लेखों में सेनापति कहा गया है / होय्यसल लेखों में सेनापति के स्थान पर “महाप्रधान 158 एंव अन्य लेखों में महादण्डनायक, दण्डाधिनाथ एंव दण्डाधिपति शब्द प्रयुक्त किये गये है५६ | साम्राज्य की रक्षा के लिए राज्य में एक विशाल सेना होती थी जिसका संचालन कार्य सेनापति करता था। लेखों से चतुरंगिणी सेना१६० - अश्व, रथी, हस्ति एंव पैदल होने की जानकारी होती है। जिसमें अश्व एंव हस्ति सेना का विशेष उल्लेख प्राप्त होता है।६१ | अश्व सेना के विशेष उल्लेखों से ज्ञात होता है कि राजाओं को स्थल भूमि पर युद्ध करने होते थे इसी कारण शत्रु के विरोध में अश्वों की अधिक आवश्यकता रहती थी। पाल लेखों में नौ सेना का उल्लेख मिलता है जो समुद्र के समीप रहते थे।६२ | कदम्ब कुल राजा वप्प के अट्ठारह अक्षौहिणी सेना होने की जानकारी होती है।६३ / प्रत्येक सेना प्रमुख सेनाध्यक्ष एंव महाप्रधान सेनापति नाम से अभिहित किये जाते थे। ___ लेखों में प्राप्त सेनापतियों की वंशावली से यह पद वंश परम्परागत ज्ञात होता है१६५|| सेनापति अपने पराक्रम एंव शक्ति से अनेक उपाधियों को धारण करते