________________ 162 / जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास क्षत्रिय सैनिक के परिवार को वृत्ति देने के उल्लेख प्राप्त होते हैं / क्षत्रियों को शासक एंव समाज का रक्षक माना गया है। वैश्य लेखों में "प्राप्त वणिक" शब्द को प्रयोग वैश्य वर्ग के लिए किया गया है। इसके साथ ही “सेठिट, धनिक, नगराधिपति शब्द भी प्राप्त होते हैं जो वैश्य वर्ग के समाज का सर्वाधिक धनाढय वर्ग होने एंव उनके कर्मों का उल्लेख करते हैं३ / दान देना, एंव कृषि, पशुपालन, व्यापार करना आदि इस वर्ण के प्रमुख कर्तव्य हैं। वैश्य वर्ण द्वारा मन्दिर निर्माण, प्रतिमास्थापना, एंव भूमि, ग्राम, उपज आदि दान देने की जानकारी होती हैं / व्यापार भेद के अनुसार वणिक श्रेणियों में विभाजित थे | शुद्र चातुर्वर्ण व्यवस्था में शूद्रों को अन्तिम एंव निम्न स्थान दिया गया है। शूद्र का धर्म द्विजातिमात्र की सेवा करना था। लेखों में शूद्र वर्ण का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। कुछ अन्य उपजातियों का वर्णन प्राप्त होता है। पूर्वमध्यकाल में "चाण्डाल" शब्द का प्रयोग अधिक प्राप्त होता है। उसकी स्थिति निम्न होते हुए भी जैनधर्म द्वारा उसे समान अधिकार दिये गये थे वे अपने कर्मो से ब्राह्मण भी हो सकते * थे। लेखों में शबर, किरात, पुलिन्द आदि जंगली जातियों का उल्लेख प्राप्त होता है। पहाड़पुर से प्राप्त मिट्टी की चौकारे वस्तुयें प्राप्त है उनमें शारीरिक बनावट एंव वेशभूषा जंगली जातियों के समान है | ___ पंचम वर्ण के अन्तर्गत डोम, चमार, नट आदि का उल्लेख प्राप्त होता है जो अपने व्यवसायों के अनुसार अनेक नामों में जानी जाती रही इन्हें शूद्रों की उपजातियाँ माना गया है। भाट शासकों की काव्यमय प्रशंसा करने, एंव नट व नर्तकियों धार्मिक उत्सवों पर राज्य दरबार में नृत्य करने के उपलक्ष्य में राज्य द्वारा दान प्राप्त करते थे। लेखों से ज्ञात होता है कि सातवी शताब्दी ई०वी० से भारतीय लेखों में म्लेच्छ एंव हम्मीर शब्द का प्रयोग किया जाने लगा। दसवी, बारहवी शताब्दी ई०वी० के लेख हिन्दू नरेशों के साथ उनके युद्ध का उल्लेख करते हैं / लेखों में तुरुष्क शब्द का प्रयोग भी मुसलमानों के लिए किया गया है। लेखों में प्राप्त वर्णनों से चातुर्वर्ण एंव उपजातियों की स्थिति साम्य होने एंव उनके बीच विभाजन कर्मो के अनुसार होना स्पष्ट होता है। धार्मिक क्षेत्र मे सभी को समान अधिकार थे।