________________ चरितकाव्य 127 धूम प्रभा एक लाख अट्ठारह हजार योजन तीन लाख तम प्रभा एक लाख सोलह हजार योजन पॉच कम एक लाख महातम प्रभा एक लाख आठ हजार योजन पॉच लाख तिर्यगलोक की स्थिति रुचकप्रदेशों के उमर एंव नीचे नौसौ, योजन तक बतलायी गयी है। मध्य लोक मध्यलोक में जम्बूद्वीप एंव लवण समुद्र के समान विस्तृत अनेक द्वीप और समुद्र हैं। प्रत्येक द्वीप को समुद्र घेरे हुए हैं इसी कारण प्रत्येक द्वीप गोलाकार आकृति वाला है। जम्बू द्वीप के मध्य मेरुपर्वत होने एंव जम्बू द्वीप के सात खंडों - 1 भरत, 2 हेमवंत, 3 हरिवर्ष, 4 महाविदेह, 5 रम्यक, 6 हैरण्यवृत्त, 7 ऐरावत में विभाजित होने के उल्लेख मिलते हैं। वर्षधर पर्वत - हिमपान, महाहिमवान, निषध, नीलवंत रुकमी एंव शिखरी इन भरतादि सात खंड़ों का उत्तर एंव दक्षिण दिशाओं में विभक्त करने वाले हैं। त्रिशषठिपुरुष चरित से इन पर्वतों एंव पर्वतों पर स्थित सरोवरों एंव सरोवरों पर निवास करने वाली देवियों की जानकारी होती है१८२ | जम्बू द्वीप के चारों और जम्बूद्वीप से तिगुने विस्तृत लवण समुद्र की स्थिति ज्ञात होती है। लवणसमुद्र के चारों और दुगने विस्तार वाला धातकी खंड है। इस धातकी खंड के चारों ओर आठ लाख योजन विस्तृत कालोदधि समुद्र हैं। धातकीखंड के चारों और पुष्करवर द्वीपार्ध है जो विस्तार में धातकीखंड के समान है। धातकीखंड एंव पुष्करवर द्वीप में स्थित पर्वतों एवं वनों की जानकारी होती है।८३ | पुष्करवर द्वीप के चारों तरफ मानुषोत्तर पर्वत है मानुषोत्तर पर्वत के अन्दर का भाग मनुष्य क्षेत्र कहा जाता है। इस पर्वत के बाहर जन्म मरण नहीं होता। इस तरह इस मनुष्य क्षेत्र में ढाई द्वीप, दो समुद्र पैत्तीस क्षेत्र, पॉच मेरु, तीस वर्धधर पर्वत, पाँच उत्तरकुरु एंव एक सौ साठ विजय होने की जानकारी होती है१८४ | मानुषोत्तर पर्वत शहर के कोट की तरह गोलाकार है इसके अन्दर की और 56 अन्तद्वीपों एंव 35 क्षेत्र होने की जानकारी होती है। इन अन्तद्वीपों में अट्ठाइस अन्तद्वीप क्षुद्रहिमालय पर्वत के पूर्वी एंव पश्चिम दिशा के अन्त में ईसानकोण आदि चार विदिशाओं में लवण समुद्र से निकली हुयी डाढ़ों पर स्थित है ओर अट्ठाइस अन्तर्वीप शिखरी पर्वत पर स्थित है.५ | चरितकाव्यों से ज्ञात होता है कि इन अन्तद्वीपों में भी मनुष्य रहते हैं पुणलिए होने के कारण वे धर्म अधर्म को नहीं समझते-६ / इन मनुष्यों के दो भेद हैं - आर्य एंव म्लेच्छ। आर्य क्षेत्र जाति, कुल, कर्म, शिल्प एंव भाषा के भेद से छः तरह के हैं। भरतक्षेत्र के साढ़े पच्चीस क्षेत्रों में जन्में हुए मनुष्य क्षेत्र आर्य कहलाते हैं। इस तरह