________________ 122 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास मित्रवल - मित्र राज्यों की सेना सेना का मुख्य सेनापति होता था। जो सम्पूर्ण सेना का संचालन करता ! युद्ध परस्पर राजाओं में राज्य सत्ता के लिए युद्ध होते थे जिसमें च. 'गणी सेना भाग लेती थी। दो राजाओं में युद्ध होने पर अन्य लोग़ एक दूसरे की सहायता करते थे०४ / युद्ध से पूर्व राजा लोग अनेक प्रकार से शक्ति संचय करते थे। वर्धमान चरित से विजय बलभद्र द्वारा देवताओं, सिंहवाहिनी, विजया वेगवती, प्रभंकरी, अशा आदि से उत्कृष्ट विद्याओं एंव मूसल, गदा, हल एंव रत्नमाला को प्राप्त करने की जानकारी होती है।०५ | युद्ध के लिए प्रयाण करते समय नानाप्रकार के वाद्ययन्त्रों से ध्वनि की जाती थी | चतुरगिंणी सेना की आवाज एंव शंख भेरी पटह घंटा आदि की ध्वनि से पृथ्वी एंव आकाश गुजांयमान हो जाता था। युद्ध स्थल में युद्ध सामग्री की पूर्ण व्यवस्था रहती जिससे कि युद्धवीरों के अस्त्र-शस्त्र, सवारों, कवच, भोजनसामग्री आदि समाप्त होने पर उनकी तत्काल व्यवस्था कर ली जाती थी | अश्व, हस्ति, रथ, पदाति सेना के सैनिक अपने अपने वाहनों पर आरूढ़ होकर समयानुकूल वेश धारण करते थे | सेना श्वेत छत्रों से युक्त होती। युद्ध भूमि में जाते समय राजा के लिए कवच शिरस्त्राण, दो भाले धनुष धारण करना आवश्यक था / युद्ध भूमि में शत्रु को आमन्त्रित करने एंव शूर वीर योद्धाओं को सूचित करने के लिए पृथ्वी एंव आकाश तक गुजांयमान-मृदंग एंव शंख ध्वनि की जाती थी | हस्तिसेना हस्तिसेना से, पदाति, पदाति से, अश्वसेना अश्वसेना से रथी रथी सेना से युद्ध करते थे१२ / सार्वभौमिक राजा के साथ अन्य माण्डलिक राजाओं के युद्ध होने के उल्लेख मिलते हैं। ___ सैनिकों द्वारा मणिमाला, मुकुट बाजूबन्द, वस्त्र, प्रलम्बसूत्र, हार, किरीट, कटिवन्धन आदि धारण करने की जानकारी होती है।१४ | राजा प्रायः इन्हें पारितोषिक रुप में देते थे। युद्ध के लिए अभियानकम में नदी या पर्वत आदि पार करने होते थे१५ | सैनिक विभिन्न प्रकार के अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित रहते जिनमें धनुष एंव कवच प्रमुख थे१६ | शक्ति तोमह, शूल, जाल, परिध, भाले, तलवारे, मुदगर दण्ड अस्त्र शस्त्रों द्वारा युद्ध की जानकारी होती है११५ | विभिन्न प्रकार के वाद्ययन्त्रों द्वारा सैनिकों को प्रोत्साहित किया जाता था | सेना में सेनानायक के प्रति सहानुभूति होती थी इसीकारण अत्यधिक घायल हो जाने पर भी प्राणपर्यन्त युद्ध से विमुख नहीं होते थे | बंराग चरित से युद्ध भूमि में सैन्य शोभा एंव युद्ध वर्णन की जानकारी होती है१२० / सेना के ऊपर फहराती हुयी पताकाएं इस बात का प्रतीक होती कि विजयी सेना पराजित सेना के तेज का अपहरण कर रही है।२१। चरितकाव्यों से शस्त्रादि युद्धों