________________ चरितकाव्य 121 अन्तर्गत हाकार, माकार, धिक्कार, अर्थदण्ड, बन्धन, ताडन, निर्वासन, प्राणदण्ड आदि नीतियों के उल्लेख प्राप्त होते हैं / असम्भव अपराधों की वास्तविकता की जानकारी केवल दूतों के द्वारा ही न करके पूर्णरुपेण छानबीन द्वारा की जाती थी। दण्ड व्यवस्था अपराधों के अनुकूल होती थी। शत्रु एंव मित्र को अपराध के समान होने पर समान दण्ड देना राजनीति थी / सर्वप्रथम अपराधी के प्रति “हाकारनीति' अपनायी जाती थी। चरितकाव्यों से "हाकार नीति का उल्लंघन करने पर तीसरे कुलकर यशस्वी द्वारा "माकारनीति से दण्ड देने की नीति अपनाने की जानकारी होती है | हाकार एंव माकार नीति के पालन न करने पर पाँचवे कुलकर प्रसेनजित के राज्यकाल में "धिक्कार नीति” को उपयोग में लाने के उल्लेख मिलते हैं | चोरी करने वाले अपराधी को धातुमय चूर्ण से काला करके, सिर पर करवी के पुष्प तथा कंधे पर शूल रखकर उसके सिर पर जीर्णसून का छत्र लगााकर, पूँछ एंव कान रहित करके गर्दभ पर बैठाकर नगर में धुमाते हुए अपमानपूर्ण ढंग से वध करने के उल्लेख मिलते हैं 6 / सम्भवतः इस तरह दण्ड देना सामान्य प्रजा को अपराधी प्रवृत्ति से रोकना था। भगवान ऋषभ के समय बेड़ी डालने, कौड़े लगाने एंव फॉसी की सजा की जानकारी होती है / अभय कुमारचरित से ज्ञात होता है कि पुत्र के अपराध में . पिता भी अपराधी समझा जाता था। सैन्यव्यवस्था राज्य को सुचारु रुप से चलाने के लिए उसका नगरों, प्रान्तों आदि में विभाजन कर दिया जाता था। प्रत्येक 2 छोटे 2 राज्य अपने को शक्तिशाली बनाने का प्रयत्न करते थे इसी कारण सैन्यशक्ति सुदृढ़ होती जा रही थी। राज्य के सप्तांगों में सेना का महत्वपूर्ण स्थान था। सेना के तीन विभाग थे। दुर्ग 2 अस्त्र शस्त्रागार 3 सेनागठन चरितकाव्यों से सेना के अन्तर्गत चतुरंगिणी सेना - अश्व, गज, रथ एंव पदाति सेना के होने के उल्लेख मिलते हैं।०० | गजसेना को विशेष महत्व था। सेना में सैनिक लोग कई स्त्रोतों से भरती किये जाते थे०१। मौल - वंशानुगत क्षत्रिय आदि जातियाँ भृत्य - केवल वेतन के लिए भरती श्रेणी - शस्त्रोपजीवी गण जातियाँ आरण्य- जंगल जातियों से भरती हुयी सेना दुर्ग - दुर्ग में रहकर लड़ने वाली अथवा पहाड़ी जातियों से निर्मित सेना