________________ 124 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास कर्तव्य था। क्षत्रिय वर्ण द्वारा शासन करने की जानकारी होती है 40 | चरितकाव्यों से ज्ञात होता है कि सम्पूर्ण प्रजा चार भागों में विभक्त थी - उग : राजा दण्ड देने के अधिकारी लोगों का, भोग : राजा या राजा के मन्त्री का काम करने वालों का कुल भोगकुल एंव जो राजा के साथ रहते एंव मित्र थे वे, राज कुल एंव शेष प्रजा क्षत्रियकुल की कहलायी१४१ / क्षत्रिय भी अपने जीवन के अन्त में तप करते थे। वैश्य वर्ण का वर्णव्यवस्था में उच्च स्थान था वे व्यापार कुशल होते थे। प्रायः ये व्यापारी एक दल के रुप में रहते थे। श्रेष्ठी शब्द का प्रयोग व्यापारी एंव वैश्य वर्ण के लिए होता था४३ | कृषि वाणिज्य, पशुपालन इनकी जीविका के साधन थे१४४ | वैश्य वर्ण के युद्ध से भयभीत होने के उल्लेख मिलते है४५ शूद्र वर्ण की स्थिति समाज के अपेक्षाकृत निम्न थी। ये जैन धर्म के सिद्धान्तों एंव उपदेश को ग्रहण कर सकते थे।४६ | चारों वर्ण अपने उचित उद्योगों में संलग्न रहते थे। चातुर्वर्ण्य व्यवस्था के अतिरिक्त 18 श्रेणी एंव प्रश्रेणी की जानकारी होती है। नौ तरह के कारीगर एंव नौ हल्की जातियों के लोग अठारह श्रेणियों के अन्तर्गत सम्मिलित थे। हल्की जातियों को नवशायक कहते थे। ग्वाला, तेली, नाई, माली, जुलाहा, हलवाई, बढ़ई, कुम्हार, चिड़ीमार ये नवशायक थे | भगवान ऋषभ ने कुम्हार, चित्रकार, जुलाहे, नाई, राज इन पॉच शिल्पकारों एंव प्रत्येक के 10-10 भेदों की उत्पत्ति अपनी प्रजा के समुचित पालन करने की दृष्टि से की४६ | भील जाति के भी उल्लेख प्राप्त होते हैं जो वनों में रहती थी इनका अपना एक राजा होता था ये युद्ध में कुशल होते थे१५० | व्यापार मार्ग में वैश्य एंव भीलों के बीच युद्ध होने की जानकारी होती है। संस्कार चरितकाव्यों से भगवान ऋषभ के समय से ही संस्कारों के सम्पन्न करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। संस्कारों में नामकरण, चूडाकर्म, उपनयन, पाणिग्रहण, दत्तकन्या से विवाह आदि संस्कार मुख्य थे"५२ / दाह संस्कार करने की भी जानकारी होती है / ये संस्कार अत्यन्त विधि-विधान के साथ सम्पन्न होते थे / अग्नि को साक्षी करके विवाह संस्कार होता था५५ |