________________ 118 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास मंत्रिपरिषद् का राजा पर अंकुश रहता था। राजा के अव्यावहारिक कार्यो से असंतुष्ट होकर मंत्रियों द्वारा राजद्रोह एंव युद्ध करने के साथ ही राजा को पदच्युत कर स्वयं राज्य करने के उल्लेख मिलते हैं। दुश्चरित मंत्रियों से राज्य नष्ट होने की भी जानकारी होती है। . पुरोहित धनुर्वेद का ज्ञाता, धार्मिक एंव व्यूहादि कार्यों में कुशल होता था | करों को निर्धारित एंव राजकीय आर्थिक व्यवस्था बनाये रखना महत्तर नामक अधिकारी का कार्य था। राजकीय एंव सार्वजनिक विवादों का प्रमाणों द्वारा परीक्षण करने के लिए दण्डनायक की नियुक्ति की जाती थी। आन्तरिक एंव बाह्य आक्रमणों से रक्षा करने के लिए सेना का उचित प्रबन्ध किया जाता था। प्रधान सेनापति दुर्ग, चतुरगिंणी सेना का प्रबन्ध एंव संचालन करता था | कोषाध्यक्ष राजकीय समृद्धि की वृद्धि एंव रक्षा करता था। चरितकाव्यों से ज्ञात होता है कि राज्य में युवराज का महत्वपूर्ण स्थान होता था यह सम्पूर्ण राज्यकीय कार्यो में सहायता एंव गृहमन्त्री के दायित्व को पूर्ण करता था। राजा युवराज सहित मन्त्रालय में उपस्थित होते थे | राष्ट्रीय एंव अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को बनाये रखने एंव गोपनीय बातों की जानकारी राजा को देना दूत का महत्वपूर्ण कार्य होता था। गोपनीय तथ्यों की जानकारी एंव विश्लेषण ये रहस्यात्मक भाषा एंव संकेतों द्वारा प्राप्त करते थे। __राजा के लिए वृद्ध मन्त्रियों एंव प्रत्येक वर्ण के वृद्ध व्यक्तियों का सम्मान करना अच्छा माना जाता था। राजा द्वारा अतिथियों का पर्याप्त सम्मान करने एंव राजाओं द्वारा लायी गयी भेंट स्वीकार करने एंव उन्हें प्रदान करने की जानकारी होती कोश कोश बल ही राजा का प्रधान बल माना गया है। राज्य की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने के लिए खनिज एंव अरण्य क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना की जाती थी | चरितकाव्यों से खनिज क्षेत्रों में सोना, चांदी, शिलाजीत, ताँबा, शीशा, लोहा, मणि, लवण, कोयला आदि के एंव अरण्य क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की लकड़ियों के उद्योगों की जानकारी होती है | कर व्यवस्था के स्पष्ट उल्लेख प्राप्त नहीं होते उद्योग एंव उद्योगों की पूंजी, श्रम, कृषि एंव अन्य विभिन्न प्रकार के कर वसूल किये जाते होंगे क्योंकि चिरकाल से क्षुब्ध प्रजा को देखकर कर रहित कर देने के उल्लेखों से कर व्यवस्था की जानकारी होती है | अश्व, हस्ति, गौ, भेड़ बकरियाँ आदि पालक पशु राज्य की सम्पत्ति थे | चरितकाव्यों से ज्ञात होता है कि कृषि व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए सिंचाई का विशेष प्रबन्ध किया जाता था / सिंचाई के साधनों में तालाब एंव सरोवर