________________ अध्याय -6 चरितकाव्य इतिहास ज्ञान हेतू चरितकाव्यों का अत्यधिक महत्व रहा है। ऐतिहासिक समस्याओं पर प्रकाश डालने में इन चरितकाव्यों से पर्याप्त सहायता प्राप्त होती है। चरितकाव्यों में वर्णित राजा रानियों एंव अन्य चरित्रों का अध्ययन उन परिस्थितियों विशेष में करना ओर उन परिस्थितियों द्वारा वह कितने अंशों में प्रभावित हुआ, का ज्ञान प्राप्त करना इतिहास की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। चरितकाव्यों में राजा, रानी, भिक्षु एंव अर्हतों, जैन धर्मानुयायी पुरुषों एंव स्त्रियों के साथ ही समाज के समृद्धतम लोगों को प्रमुख पात्रों के रुप में लिया गया है। सामान्यतया इन चुने हुए चरित्रों को जैन धर्माबलम्बी या धर्मानुयायी बनाना उद्देश्य रहा है जैनाचार्यो ने इन चरित्रों से शिक्षा ग्रहण करने एंव कराने के उद्देश्य से चरितकाव्यों का सृजन किया। अतएंव चरितकाव्यों में कभी भी मुख्य पात्रों के सम्बन्ध में पराजय या अप्रिय घटनाएँ प्राप्त नहीं होती हैं। चरितग्रन्थों में नायक के गुणों के वर्णन में कल्पनाएं भी प्रदर्शित की गयी हैं। चरितकाव्यों का रचनाकाल प्रायः उस समय प्रारम्भ हो जाता है जब हिन्दू एंव बौद्ध परम्पराओं में इतिहास परक ग्रन्थों के निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी थी अतः घटनाओं के वर्णन एंव तिथियों का विवरण इतिहास सम्मत पाया जाता है। सर्वप्रथम हिन्दू बाल्मीकि रामायण के आधार पर रविषेण एंव जटासिंह नन्दी द्वारा पद्मचरित एंव बरांगचरित का सृजन किया गया जो समाज एंव संस्कृति की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। चरितकाव्यों में अलौकिक एंव अप्राकृत तत्वों का अभाव दिखता है जिसके परिणाम स्वरुप दिव्य लोकों, दिव्यपुरुष, दिव्ययुगों एंव अर्द्धदैवी (विद्याधर यक्ष, गन्धर्व, देव राक्षस आदि) पात्रों का वर्णन नहीं के बराबर आया है। जिन चरितकाव्यों में इनका उल्लेख हुआ है वहॉ जैनाचार्यो ने उदारवादी एंव मानवीय बुद्धि संगत दृष्टिकोण द्वारा उन्नत एंव उदात्त मानवीय रुप में प्रस्तुत किया है। चरितकाव्यों में वर्णित कथानकों के आधार पर जो तत्कालीन परिस्थितियाँ प्रतिविम्बित हुयी हैं उनका प्रस्तुतीकरण विभिन्न कमों से विश्लेषित हैं। राजनीतिक चरितकाव्यों से राज्य के स्वरुप एंव उसके महत्वपूर्ण अंग राजा की