________________ जैन इतिहास का वित; ' और विकास 61 पुरुषों का भी वर्णन किया है। जिनमें चौबीस तीर्थकंरों के सम्बन्ध में प्राचीन उल्लेख समंवांयाग, कल्पसूत्र एंव आवश्यक नियुक्ति में मिलता है। सर्वप्रथम उल्लेख समवायांग सूत्र में किया गया है 5 आवश्यक नियुक्ति में बलदेव, वासुदेव एंव प्रतिवासुदेवों का वर्णन किया गया है "जिससे ज्ञात होता है कि बलदेव और वासुदेव हमेशा भाई के रुप में उत्पन्न होते हैं तथा प्रतिवासुदेव वासुदेवों के प्रतिस्पर्धी (विरोधी) होते हैं। वासुदेव प्रतिवासुदेवों के बीच युद्ध होने, वासुदेवों द्वारा प्रतिवासुदेवों के प्राणहरण करने एंव विजय प्राप्त करने की जानकारी होती है | जैनाचार्यो एंव इतिहासकारों द्वारा आगम साहित्य में जैन तीर्थकरों द्वारा उपदिष्ट धर्म एंव श्रमण आचार विचार के साथ जैनधर्म के मान्य त्रेषठशलाकापुरुषों के जन्म स्थान, दीक्षास्थान आदि विषयों के उल्लेखों से तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक एंव भोगोलिक जानकारी हाती हैं। छठी शताब्दी ई०वी० के उत्तरयुगीन जैन इतिहासकारों द्वारा समाज संस्कृति, राजनीति को अपने साहित्य का विषय बनाया गया। आगम साहित्य के आधार पर जैन इतिहास का विकास हुआ जो साहित्य की अनेक विधाओं में प्राप्त होता है। इन साहित्यिक विधाओं में आगमों में वर्णित विषयों को सिद्धान्तों का रुप दिया गया एंव महा पुरुषों के जीवन वर्णन द्वारा समाज के सभी क्षेत्रों में आध्यात्मिकता एंव नैतिकता लाना इतिहासकारों ने अपना उद्देश्य बनाया। हिन्दू धर्म के अन्तर्गत छठी शताब्दी ई०वी० तक अनेक धार्मिक ग्रन्थों एंव पुराणों आदि की रचना हो चुकी थी। हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों-पौराणिक आख्यानों एंव परम्पराओं से जैन इतिहासकार प्रभावित हुए। परिणामस्वरुप अपने धार्मिक सिद्धान्तों को सर्वोपरि रुप देने के लिए हिन्दू पुराणों के आधार पर पुराणों में जैन इतिहास लिखना प्रारम्भ किया। जैन इतिहासकारों ने अपने पौराणिक साहित्य में तीर्थकर; चक्रवर्ति, नारायण, प्रतिनारायण एंव बलदेव आदि महापुरुषों के चरितों को निरुपण करने के * साथ ही जैन धर्म के परम्परागत चले आते हुए सिद्धान्तों को विकसित एव सर्वोपरि रुप देने के लिए हिन्दू पुराणों के कथानकों के जैनीकरण की प्रक्रिया अपनायी। बाल्मीकि रामायण की शैली पर जैन इतिहासकारों ने सांतवी शताब्दी में चरितकाव्यों की रचना की जिनमें पद्मचरित एंव बंरागचरित प्रमुख हैं। जैन इतिहासकार साहित्यकार होने के साथ ही उपदेशक एंव धर्मप्रचारक थे वे अपनी साहित्यिक कृतियों द्वारा जैनधर्म के सिद्धान्तों एंव नैतिक भावनाओं को जनसाधारण में पहुंचाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने तत्कालीन प्रसिद्ध महापुरुष, जैन धर्मानुयायी एंव आचार सम्पन्न स्त्री पुरुषों के जीवन से प्रभावित होकर चरित ग्रन्थों में उनका चरित्र वर्णन किया / चरितग्रन्थ धार्मिक एंव दार्शनिक तथ्यों से युक्त हैं। अनेक चरितग्रन्थों में आश्रयदाताओं के चरित्र वर्णन किये गये हैं क्योंकि उनके द्वारा जैन धर्म को प्रश्रय दिया गया था।