________________ कथा साहित्य 106 विलेपन, पान, इत्र, फुलेल एंव बहुमूल्यवस्त्र, स्वर्ण, हीरा, मोती एंव पन्ने से निर्मित आभूषणों का शरीर सौन्दर्य की वृद्धि के लिए प्रयोग करते थे। दूध, घी, दही शक्कर की बहुलता थी। इसीकारण जैनों में सात्विक आहार, खाद्य, स्वाद, पेय, लेय इन चारों के प्रति अभिरुचि थी" | कथाओं से व्यापारिक स्थानों एंव वहाँ के निवासियों के रहन सहन वेशभूषा एंव स्वभाव व्यवहार की जानकारी होती है | राजनैतिक कथाओं में प्राप्त उल्लेखों से कुछ अंशों में तत्कालीन राजनैतिक व्यवस्था की जानकारी होती है। महावीर कालीन राजाओं द्वारा उस समय में प्रचलित सभी धर्मो को प्रश्रय दिया गया क्योंकि वे किसी विशेष व्यक्तिगत धर्म से सम्बन्धित न रहकर, महान पुरुषों की सेवा करना अपना धर्म समझते थे | पहले यातायात के साधनों के अभाव में जैन श्रमण किसी आचार्य या संघपति के नेतृत्व में तीर्थयात्राओं के लिए जाते थे | धर्मोपदेश के निमित्त लिखी गयीं किसी कथा में विदिशा पर म्लेच्छों (शको) के ऐतिहासिक आक्रमण का उल्लेख है तो किसी में नन्दराजा एंव उसके मंत्री शकटार का उल्लेख है। चाणक्य ने कुटनीति द्वारा नन्दवंश का विनाश किया एंव मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त एंव उसके गुरु भद्रबाहु का चरित्र चित्रण विभिन्न कथाओं में किया गया है। सम्प्रति द्वारा अनार्य देशों को जैन श्रमणों के विहार योग्य बनाने का उल्लेख कथाओं में प्राप्त होता है | __ कथा साहित्य से ज्ञात होता है कि राजा सेना, शासन, एंव विधि व्यवहार का केन्द्र था। पीड़ित प्रजा कभी भी राजदरबार में राजा से अपने कष्टों को कह सकती थी | राजकीय सदस्यों, ब्राह्मण, पुरोहित एंव जनसामान्य के साथ निष्पक्ष न्याय होने की जानकारी होती है। न्याय व्यवस्था कठोर होते हुए भी राजा निरंकुश होते थे। निरपराधी को दण्ड मिलने एंव अपराधी के छूट जाने के उल्लेख कथा साहित्य में प्राप्त होते हैं। फिर भी विभिन्न प्रकार के उपायों से वास्तविक तथ्य की जानकारी कर निर्णय देने की पद्धति अपनायी जाती थी। कथा साहित्य में विभिन्न प्रकार के दण्डों का उल्लेख मिलता है। राजकर्मचारी द्वारा चोरों को वस्त्र युगल एंव गले में कनेर के पुष्पों की माला पहनाकर, शरीर को तेल से सिक्त करके उस पर भस्म लगाकर उन्हें नगर के चौराहों पर धुमाते हुए दण्डों एंव कोड़ों से पीटा जाता था। किसी सम्माननीय पुरुष का अपराध करने या प्राणहरण करने पर उसके नाक, कान कटवाकर गधे पर चढ़ाकर राज्य से निष्काषित कर दिया जाता था। प्राण हरण करने पर प्राण दण्ड देने एंव अपराध के अनुसार अपराधी को अंग विहीन किये जाने की जानकारी कथासाहित्य से होती हैं / सामाजिक संगठन को व्यवस्थित बनाये रखने के लिए