________________ 62 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास पुराण एंव चरितकाव्यों की तरह ही जैन इतिहासकारों ने अपने विषय धार्मिक सिद्धान्तों का विकास करने के लिए कथा साहित्य को भी अपनाया क्योंकि जैन धर्म के अनेक तत्वों, व्रत, संयम, अनुष्ठान, व्रतों का स्वरुप उनके विधि विधान् अपरिग्रह, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, सत्य एंव अहिंसा के रुपों एंव उनके परिणामों को कथाओं एंव कहानियों के द्वारा अति सुगमता से समाज के उच्च एंव निम्न, धनी एंव निर्धन, शिक्षित 'एंव अशिक्षित सभी वर्गो के मनुष्यों तक पहुंचाया जाना सम्भव था। अतएव जैन इतिहासकारों ने समाज के सभी वर्गो से सम्बन्धित कथाओं, आख्यानों एंव कथाकोषों की रचना की जिसमें धार्मिक सिद्धान्तों को स्थान दिया। ___ जैन धर्म के सिद्धान्तों का विकास अभिलेखीय साहित्य के द्वारा भी हुआ, जैन धर्म को जनवर्ग एंव राजवंशों द्वारा प्रश्रय प्राप्त था। इसी कारण जनवर्ग एंव राज्याधिकारियों द्वारा उत्कीर्ण कराये गये अभिलेखों में दान, तप, शील, समाधिमरण, मुनि एंव श्रावक आचारों एंव मोक्ष के वर्णन के साथ ही जैन संघ, गण गच्छ एंव जैनाचार्यों और उनकी वंशावलि का उल्लेख किया गया है। जैन आगम साहित्य में वर्णित विषय उपदिष्ट धर्म, आचारविचार एंव महापुरुषों के चरित्र निरुपण का विकास छठी शताब्दी ई०वी० के उत्तरकालीन पुराणों, चरितकाव्यों, कथा साहित्य, एंव अभिलेखीय साहित्य के माध्यम से होता हैं। जैन इतिहासकारों ने समाज, संस्कृति एंव राजनीति एंव भोगोलिक वर्णनों को भी अपनी साहित्यिक कृतियों का विषय बनाया जिनका विश्लेषण विभिन्न अध्यायों में विस्तार के साथ किया गया है। संदर्भग्रन्थ ॐ 1. आ०पु० 3/14-20 2. आ०पु० 3/57-62 3. आ०पु० 3/80-200, ह०पु० 7/124 ___ आ०पु० 16/176-186, ह०पु० 7/65 5. स०सू० 24, क०सू० 6-7, आ०नि० 366 डौक्ट्रीन्स आव द जैन्स पृ 23 मूलाचार 7/36-38 7. ___ मूलाचार 7/126-133, त०सू० 6,18 8. आ०चू०२, पृ 187 6. नि०चू०पृ 8 10. वीर निर्वाण एंव जैन काल गणना पृ 120 11. भारतीय जैन श्रमण पृ 17 / 12. सम०सू० 246-75 आ०चू०पृ० 460 14. बृ०क०सू० भाग पृ५