________________ अध्याय - 5 कथा साहित्य कथा साहित्य जैन साहित्य का विशेष अंग रहा है। निवृत्तिमार्गी होते हुए भी जैन कथाकारों का उद्देश्य अपने धर्म के मूलभूत सिद्धान्तों का प्रतिष्ठापन एंव प्रचार करना था। वे प्रत्येक घटना को धार्मिक आख्यान एंव उपाख्यानों के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। जैन कथासाहित्यकारों ने तीर्थकरों, श्रमणों एंव अन्य शलाका पुरुषों के नैतिक एंव सदाचार मय जीवन को कथाओं के माध्यम से प्रवाहित करके जनसाधारण के जीवन स्तर को उन्नत बनाया'। जैन कथाओं की शैली एक परम्परा को अपनाये हुए है। भूत एंव वर्तमान के सुख दुख की व्याख्या कारण निर्देश सहित की गयी है। कथाओं को जनसाधारण में रोचक बनाने हेतु कहावतों मुहावरों एंव सुक्तियों का भी प्रयोग किया गया है। प्रत्येक कथा के प्रारम्भ में मंगलाचरण स्वरुप जिनेन्द्र भगवान की स्तुति परक कुछ पंक्तियाँ होती हैं तथा कथा की समाप्ति पर जिनेन्द्र भक्ति की कामना की जाती है। जैन कथाकारों ने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि जनपदीय भाषाओं में गद्यात्मक पद्यात्मक मिश्रित शैली में कथासाहित्य का निर्माण किया है। उनका उद्देश्य जनसाधारण में नैतिक भावना को पहुँचाना था। इन कथाख्यानों में मानव जीवन के इहलौकिक एंव पारलौकिक सुख को प्रधानता देकर आदर्शवाद को स्थान दिया गया है। जैन कथा साहित्य की प्राचीनता परम्परागत लक्षित होती हैं धर्म, अर्थ एंव काम से सम्बन्धित कथाओं के वर्णन के साथ ही मोक्ष विषयक भावना सर्वत्र विद्यमान है जिसमें विरक्ति त्याग, तपस्या, पूजन आदि धार्मिक चिन्तन मुख्य है। धार्मिक जैन धर्म के अन्तरगत संसार को दुख, कष्टों से युक्त होते हुए क्षण भंगुर माना गया है। जैन धर्म कर्म पर बल देते हुए कर्मो का फल अवश्यम्भावी मानता है। इसी कारण जैन कथा साहित्यकारों ने अपने कथाग्रन्थों में आत्म विषय दमन करने, इच्छाओं पर नियन्त्रण करने एंव संसार के माया, मोह के त्याग द्वारा ही शाश्वत निर्वाण सुख प्राप्त हो सकता है, को स्पष्ट किया है। ___ महावीर द्वारा उपदिष्ट पंच महाव्रतों का कथासाहित्यकारों ने लोक प्रचलित कथाओं के माध्यम से उपदेश दिया। संयम, तप, त्याग एंव वैराग्य पर प्रधानता देते हुए धर्म के शाश्वत रुप से जनसाधारण को परिचित कराया" / परिणाम स्वरुप समाज