________________ 104 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास अर्थ की सिद्धि का स्त्रोत माना है। समराइच्चकहा में समरादित्य अशोक, कामाकुर एंव ललितांग नामक मित्रों के साथ कामशास्त्र की चर्चा करता है। जैन कथाऐं धार्मिक सिद्धान्तों के उल्लेख के साथ ही उन महान आत्माओं के महत्वपूर्ण जन्म का भी वर्णन करती हैं जो धार्मिक उपदेशक के रूप में सामने आते है / वृहत्कथाकोष से पुनर्जन्म, कर्म, ईश्वर, देव द्वारा मन्दिरों में पूजा ग्रहण करने, मन्दिरों में उत्सव, व्रत एंव अनुष्ठान आदि होने की जानकारी होती है। बौद्ध एंव ब्राह्मण धर्म के समान ही उत्सवों पर रथ यात्रा का प्रदर्शन किया जाता था | साधु सेवा, जैन शासन प्रभावना का फल, दान, मुनियों के दोष निरुपण का फल आदि जैन धर्म से सम्बन्धित सिद्धान्तों को कथाकारों ने अपने कथासाहित्य में वर्णित किया है। __ जैन श्रमण घातक कमों को नाशकर मोक्ष प्राप्त करते थे। जैन कथासाहित्यकारों ने विषयों में आसक्त जीव को मुक्त होने एंव पवित्र धर्म भावों को धारण करने का उपदेश दिया है२३ / दान, पूजा, व्रत एंव शील रुप पवित्र चार धर्म का पालन श्रावकों को करते रहने का निर्देश दिया गया है। जैन धर्म में गुरु को सम्मानीय स्थान प्राप्त था। गुरु की प्रथम वन्दना एंव आज्ञा पालन करने वाले सुख प्राप्ति के साथ ही मोक्ष प्राप्त करते थे | जैन धर्म का पंच नमस्कार मंत्र प्राणीमात्र को शान्ति पूर्वक मृत्यु एंव सुगति प्रदान करने वाला बताया गया है | सामाजिक तत्कालीन सामाजिक परम्पराओं, मान्यताओं एंव विभिन्न प्रकरणों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से साहित्यिक ग्रन्थों में समावेश होना स्वाभाविक होता है। जिससे स्वाभाविक या अस्वाभाविक रुप से तत्कालीन इतिवृत्त प्रतिबिम्बित हो उठते हैं। हिन्दू परम्परा के अन्तर्गत कथाओं के माध्यम से इतिवृत्तियों को निबद्ध करने की परम्परा रही है उसी परम्परा का अनुगमन जैन कथा साहित्य में किया गया है। कथाकारों ने जनसाधारण को प्रभावित करने के लिए कथाओं को अपनाया। जैनधर्म मूलतः जनसामान्य में व्याप्त हुआ। प्रायः सभी श्रमण परम्परा के धार्मिक मतों के धार्मिक प्रचार के केन्द्र जन साधारण ही रहे, पर इन धर्मो की अपनी उदात्त भावनाओं ने सामन्तवादी विचारधारा वाले समाज को भी प्रभावित किया। यही कारण है कि कथाओं के पात्र सामन्तवादी समाज के राजकीय वर्ग से लेकर जनसाधारण तक के वर्ग के हैं। जैन धर्म का अभ्युदय ही समाज के उपेक्षित वर्ग को सम्मानित स्थान प्रदान करने हेतु हुआ। समाज में व्याप्त अव्यवस्था को दूर करने वाली प्रवृत्तियों के दर्शन भी इन कथाओं में होते हैं। शासक और सामान्य वर्ग के बीच की दूरी दूर करने हेतु सामाजिक प्रवृत्तियों में स्तरीकरण एंव कमीकरण के प्रयास किये