________________ पुराण 67 चौड़ा बतलाया गया है। इन्हीं लोका नध्यलोक के किसी एक भाग में देश, पर्वत, द्वीप एंव समुद्र आदि का वर्णन देशाख्यान एंव देश की राजधानी इत्यादि का वर्णन पुराख्यान कहलाता है। किसी राजा की नगरी आदि के वर्णन को राजाख्यान् की संज्ञा दी गयी है। इस प्रकार जैन पुराणों में लोक, देश, नगर, राज्य, तीर्थ, दान, तप, गति आदि उनके विकास की ओर संकेत करते हैं। हिन्दू पुराणों की भांति हर स्थान पर पूर्व कथित बात के समाप्त होने पर "सूत उवाच" जैसी शैली नहीं अपनायी गयी है। बिना उस रुप के पूर्व पक्ष का उत्तरपक्ष से सम्बन्ध मिलाने का प्रयास किया गया है। जैनपुराणों पर इस दृष्टि से महाकाव्यों का प्रभाव स्पष्टतः लक्षित होता है / जैनपुराणों में काव्यात्मक शैली भी दृष्टिगोचर होती है। जैन पुराणों में महाकाव्यों की तरह वक्ता श्रोता को बहुत कम स्थलों पर सम्बोधित करता है। आदिपुराण में केवल एक ही स्थान पर श्रोता द्वारा पुराण सुनने की इच्छा व्यक्त की गयी है | जैन पुराणों का प्रारम्भ प्रायः अर्हदेव की वन्दना से होता है२२ प्रारम्भ में तीनों लोकों, कालचक एंव कुलकरों के प्रादुर्भाव का वर्णन होता है उसके पश्चात् जम्बूद्वीप एंव भारत देश का वर्णन करके तीर्थस्थापना एंव वंश विस्तार का वर्णन प्राप्त होता है। तत्पश्चात् सम्बन्धित पुरुष के चरित्र का वर्णन होता है। पूर्वभव की कथाओं के प्रसंग के साथ साथ प्रसंगानुसार अन्य अवान्तर कथाओं का भी समावेश मिलता है। इन लोक कथा एंव अवान्तर कथाओं में जैन सिद्धान्त का प्रतिपादन, सत्कर्म प्रवृत्ति, असत्कर्म निवृत्ति, संयम, तप, त्याग, वैराग्य आदि की महिमा, कर्म सिद्धान्त की प्रबलता इत्यादि वर्णन मिलता है। पुराणों के शेष भाग में तीर्थकंर की नगरी, मातापिता का वैभव, गर्भ जन्म, क्रीड़ा, शिक्षा-दीक्षा, प्रवज्या, तपस्या, परिषह, अपसर्ग, केवल प्राप्ति, समवसरण, धर्मोपदेश, विहार निर्माण इत्यादि का वर्णन संक्षेप में या विस्तार से पाये जाते हैं। जैन पुराणों में त्रेशठशलाका पुरुषों के चरित्र एंव घटनाओं के वर्णन के अतिरिक्त विभिन्न व्यापारों एंव परिस्थितियों, प्रेम, विवाह, संगीत, समाज एंव गोष्ठी, राजकाज मन्त्रणा, दूतप्रेषण, सैनिक अभियान, व्यूहरचना, युद्ध एंव नायक के रुप में चक्रवर्ती आदि भी जैन पुराणों का विषय रहा है। जैन पुराणकारों ने मध्ययुगीन सामन्त वर्गीय श्रृंगारिक प्रवृत्तियों का वर्णन करने के लिए श्रृंगार रस का प्रयोग रानी राजाओं एंव प्रेमी प्रेमिकाओं के प्रसंग में मर्यादानुकूलित होकर किया है। मध्ययुगीन सामन्त वर्गीय श्रृंगारिक प्रवृत्तियों की पुष्टि नवीं, दसवीं शताब्दी के मन्दिरों पर उत्कीर्ण मिथुन मूर्तियों के अंकन से होती है। महती घटनाओं एंव महान चरित्रों द्वारा जैन धर्म के निवृत्ति परक सिद्धान्तों के प्रतिरसानुभूति कराने के लिए अलंकारों का भी प्रयोग किया है। जैन पुराणों की शैली को ओजपूर्ण, गम्भीर एंव गरिमायुक्त बनाने के लिए जैन पुराणकारों में ऋषभ, भरत, बाहुबली, पौराणिक राम जैसे महान चरित्रों का वर्णन किया है।