________________ पुराण 75 एंव राज्य के सप्तांगों का उल्लेख प्राप्त होता है / सोमदेव इन सप्तांगों को राज्य के लिए परमावश्यक बतलाते है | राजनीतिक गतिविधि पुराणों में वर्णित राज्यवंशीय परम्पराओं, उत्सवों, आमोद-प्रमोदों तथा वैभवादि के वर्णनों से जैन जगत में प्रचलित कतिपय राजनीतिक गतिविधियों पर प्रकाश पड़ता है। राज्य पद की गरिमा के अनुकूल राजा की दिनचर्या का होना नितान्त आवश्यक बतलाया गया है। जैन धर्म आचार पर विशेष बल देता है इसी कारण राजा के जैन मुनि के समीप पैदल जाने, प्रदक्षिणा करके नतांजलि होकर प्रणाम करने की जानकारी होती है | जैनाचार्यो श्रमणों आदि का राजकुल में आदर होता था | राज्यशास्त्रीय ग्रन्थों में राजा के कर्तव्यों का वर्णन करते हुए धर्म के अभ्युदय हेतू अनुकूल वातावरण के सृजन का उत्तरदायित्व राजा को दिया गया है जिसके निमित्त राजा मन्दिरों में धार्मिक पूजा के लिए आज्ञा प्रसारित करते थे। जिससे सामान्य जनता पर प्रभाव पड़े और लोग धर्म का आचरण करें। इसी तरह राजा का प्रजा द्वारा विशेष सम्मान किया जाता था। अभिषेक राज्यतंत्र के मूल में अभिषेक का महत्वपूर्ण स्थान हिन्दु एंव जैन परम्परा में समान रुप से बतलाया गया है। राज्यतंत्र में राजा के राजपदीय जीवन का प्रारम्भ यहीं से होता है। आदि पुराण में तीर्थकर ऋषभदेव के राज्याभिषेक का वर्णन प्राप्त होता है। अभिषेक में सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व होना आवश्यक माना गया है। तीन प्रकार के जल द्वारा अभिषेक करना तीनों वर्णो के प्रतिनिधित्व की और संकेत करता हुआ पायावाला है। अभिषेक के उपरान्त राजा द्वारा पट्टबन्ध बाँधा जाता था। यह पट्टवन्ध चंचला राजलक्ष्मी को स्थिर करने का सूचक माना गया है | ऋषभदेव द्वारा पट्टबन्ध इत्यादि धारण करने के वृतान्त का वर्णन स्पष्टतः पूर्वमध्ययुगीन अभिषेकीय परम्पराओं की और संकेत करता हुआ पाया जाता है। राष्ट्रकूट नरेश इन्द्र तृतीय एंव गोविन्द चतुर्थ के पट्टबन्ध महोत्सव के लिए गोदावरी जाने के उल्लेख मिलते हैं | अन्तः पुर राज्यतन्त्र के अन्तर्गत अन्तःपुरीय व्यवस्थाओं पर विशेष ध्यान दिया जाता था। कुंचकी अन्तःपुर की व्यवस्था करते थे५ / अन्तः पुरों में द्वारपालियॉ एंव परिचारिकाएँ रखी जाती थीं ये रानियों एंव राजाओं की सभी प्रकार की सेवाएं करती थी | द्वारपालिकाएं अस्त्रों से युक्त होकर बाह्य एंव आन्तरिक स्थानों पर पहरा देती थी।