________________ पुराण पास अधीनता स्वीकृत करने के लिए दूत भेजता था जो राजा को दूत नीति से समझाता था / पाखण्डपूर्ण शब्दों के प्रयोग की भी जानकारी होती है / दूतों की तीन श्रेणियाँ बतायी गयी हैं१४६ | दूत को मारना निषिद्ध था उसका अपमान किया जा सकता था। अधिक अपमान किये जाने एंव प्रस्ताव के अस्वीकृत कर देने पर शक्तिशाली राजा युद्ध के लिए तैयार हो जाता था 51 | राज्यापराध एंव दण्ड उपद्रव, लूट, राजद्रोह, विषदान, हत्या, षडयन्त्र अन्तःपुर में उपद्रव करना, हाथी घोड़ों की चोरी, वीरों की हत्या आदि राज्या-पराध एंव कन्याहरण, वेश्यावृत्ति, नागरिकों को लूटना, चोरी आदि सामाजिक अपराधों का उल्लेख पुराणों में मिलता है।५२ | इन अपराधियों को कठोर दण्ड देने सांकलों से बाँधकर राजदरबार में ले जाने, नगर में घुमाने, चौराहों पर गर्दन, हाथ पैरों को सांकल से जकड़कर धूल फेंकने, अपराधी को राजदरबार में तलवार से दो टुकड़े करने, पानी में विष मिलाकर पिलाने आदि दण्डों के प्रकार के उल्लेख प्राप्त होते है५३ / सर्वप्रथम प्रतिश्रुति कुलकर ने हा, मा, एंव धिक में तीन दण्ड की धाराएं स्थापित की१५४ | पुराण एंव समाज व्यवस्था जैन धर्म निवृत्तिमार्गी धर्म है। इसकी इस प्रवृत्ति को बदलती हुयी परिस्थितियों से अत्यधिक प्रभावित होना पड़ा। महावीर के काल में श्रमण परम्परा के अन्तर्गत कर्म एंव तप का महत्व बढ़ गया था जिसने जैन सामाजिक संगठन को काफी प्रभावित किया। जैन समाज में व्यक्ति से ही चारों वर्णो की उत्पत्ति मानी गयी है१५५ | जैन पुराणों एंव अन्यान्य साहित्य से ज्ञात होता है कि जैन समाजीय आदिम व्यवस्था ब्राह्मण एंव बौद्धों की आदिम व्यवस्था से मिलती जुलती है। भोगभूमि व्यवस्था के नष्ट होने पर कर्मभूमि की स्थापना करके, ऋषभ ने शस्त्र धारण कर क्षत्रियों की, अपने उरुओं से यात्रा दिखलाकर वैश्यों की एंव दैन्य भाव से सेवा कर्म का उपदेश कर शूद्रों की रचना और उनकी आजीविका के साधनों को उनकी उत्पत्ति के अनुरुप ही निश्चित किया"५६ | ब्राह्मण वर्ण की उत्पत्ति भरत द्वारा की गयी। इनकी अहिंसात्मक एंव बौद्धिक निपुणता से प्रभावित होकर अध्ययन अध्यापन, यजन याजन आदि कार्य ब्राह्मण वर्ण के निश्चित किये / सामाजिक संगठन का आधार __पुराणों में वर्ण विभेद का आधार कर्म अथवा वृत्ति को माना गया है५८ | जैन पुराणों में उल्लिखित वर्ण व्यवस्था हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों के उल्लेख से मिलती