________________ . 62 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास अपनी विशेषता है। दान देते समय दान, देय और पात्र पर विशेष ध्यान दिया गया है। पुराणों में सत्पात्र को दान देने से स्वर्ग एंव मनुष्य गति प्राप्त होने एंव अपात्र को दान देने से तिर्यक एंव नरक गति प्राप्त होने के उल्लेख प्राप्त होते हैं२७७ / पुराणों में प्राप्त मुनि आचार, श्रावकाचार एंव धर्म के सिद्धान्तों से ज्ञात होता है कि तीर्थकंरों द्वारा उपदिष्ट धर्म जो आगमों में वर्णित हुआ है वह पुराणों में आचार एंव सिद्धान्तों का रुप धारण कर लेता है। संदर्भ ग्रन्थ + ॐ ॐ __ आ० पु. प्रथम भाग 2/110- 111 2. आ० पु० 1/21-26 3. आ० पु० पृ० 21 __ आ० पु० 24/25 ह०पु० 1/70 5. म० पु० भाग 1 पृ० 32 प० च० पृ० 8, प० पु० 1/21-24 अरंहतों, चक्रवर्तियों, विद्याधरों, वासुदेवों, चारणों, प्रज्ञाश्रमणों, कौरवों, इक्ष्वाकुओं, काशिकों, वादियों, हरिवंश एंव नाथ वंश। षट्खण्डागम भाग 1 पृ० 112 6. आ० पु० 2/38 10. विष्णुपुराण खण्ड 3 6/25-26 11. आ० पु० 3/14-21 12. आ० पु० 16/256-257 13. आ० पु० 16/260 14. भा० पु० 12/7/16 15. आ० पु० 16/255 16. आ० पु० 3/63-165 17. आ० पु० 3/230 / 18. आ० पु० 4/3, 2/38 16. आ० पु० 4/41 20. सु० म० ग्र० पृ० 71 21. आ० पु० 1/152 22. आ० पु० 1/1