________________ पुराण 83 ऋषभ द्वारा अपनी पुत्रियों को लिपि की शिक्षा देने एंव श्रावक के घर ही शिक्षा व्यवस्था होने के कारण स्त्री शिक्षा का पर्याप्त विकास हुआ२०१। राजघरानों की एंव जन सामान्य स्त्रियाँ शास्त्रों में निष्णात एंव कवियत्री मिलती है / पुराणों से विभिन्न नगरों की स्त्रियों के अंग प्रत्यंगों के सौन्दर्य के उल्लेख मिलते हैं। पउनारी की स्त्रियों के चरणतल, सिंहलनगर की स्त्रियों के नख, बेउल्ल की स्त्रियों की अंगुलियाँ, गोल्क की स्त्रियों की एड़ी, कॉची की स्त्रियों की श्रोणि एंव गम्भीर देश की स्त्रियों की नाभि इत्यादि२०३ / इस तरह विभिन्न गुणों से युक्त नारी के विभिन्न प्रकारों का वर्णन मिलता है। जैन पर्व एंव उत्सव जैन परम्परा में अष्टान्हिका महापर्व एंव नन्दीश्वर अष्टान्हिका महोत्सवों का विशेष महत्व है ये उत्सव अत्यन्त धूमधाम से मनाये जाते थे। पर्वो एंव उत्सवों पर जिनेन्द्र प्रतिभा का अभिषेक किया जाता एंव उनकी अष्टविधि पूजा की जाती थी२०४। शकुन, अपशकुन की मान्यताएं जैन पुराणें से प्रस्थान कालिक मंगलों एंव मंगलाचरण करने की जानकारी होती है। जाने वाले व्यक्ति के आगे सपल्लवमुख पूर्ण कुम्भ रखा जाता था०५ | दाये अंग का फड़कना शुभ माना जाता था। प्रस्थान करते समय अनेक शकुन अपशकुन होने के वृतान्त मिलते हैं०६ | धार्मिक ___ पुराणों के अनुसार मोक्ष मार्ग के लिए सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्र एंव अहिंसा से युक्त धार्मिक अनुष्ठानादि ही जैन धर्म है२०७ / पद्मपुराण के अनुसार जैनधर्म का मूल है दया और उसका मूल है अहिंसा२८ / निवृत्तमार्गी एंव परलोकवादी धर्म होने के कारण जैन धर्म में प्राणीमात्र का यथार्थ रुप में वर्गीकरण, ज्ञान सम्बन्धी सिद्धान्त, स्याद्वाद एंव सप्तभंगी, संयम प्रधान नीतिशास्त्र (आचारशास्त्र) एंव कियात्मक आचार शास्त्र का दार्शनिक कल्पना के साथ मिश्रण देखने को मिलता है२०६ | जैन धर्माचार्यो ने लौकिक एंव पारलौकिक सुख की प्राप्ति धर्म द्वारा बतलायी है। सर्वसाधारण को धर्म में प्रवृत्त कराना ही जैनाचार्यो का प्रमुख उद्देश्य रहा है। जैनाचार्य समन्तभद्र ने जैन धर्म को प्राणियों को सांसारिक कष्टों से छुड़ाकर उत्तम सुख में नियोजित करने वाला माना है२१० /