________________ पुराण ... 85 है यह मुनि आचार पर अधिक बल देता है। आचार से सम्बन्धित व्रतों के धारक महाव्रती कहे जाते हैं। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एंव अपरिग्रह का पालन करना ये पंच महाव्रत एंव अणुव्रत है२१९ / अहिंसा मुनियों एंव गृहस्थों के लिए मनसा, वाचा कर्मणा सभी प्रकार से हिंसा का त्याग आवश्यक है२२० / अहिंसा परमो धर्मः मानकर जैन धर्म अहिंसा की व्याख्या करता है। तत्वार्थ सूत्र में प्रमाद, मन, वचन एंव काय के योग से होने वाले प्राणों के धात को हिंसा कहा गया है। इसी कारण छहों काय के जीव की हिंसा न करने, के लिए काम, कोध आदि भावों को न आने देने एंव रात्रि भोजन न करने का निर्देश दिया गया है। जैन सिद्धान्त के अनुसार जीव दो प्रकार के हैं - स्थावर एंव त्रस२२२ / चलने फिरने वाले - मनुष्य पशु पक्षी त्रस जीव एंव पृथ्वी रुप, जल रुप, अग्नि रुप, वायुरुप एंव वनस्पति रुप जीव हैं उन्हें स्थावर कहा गया है। गृहस्थ स्थावर जीव की हिंसा से नहीं बच सकते। त्रसों की हिंसा चार प्रकार की बतलायी गयी है - संकल्पी, आरम्भ, उद्योगी, विरोधी / अतएव जैन श्रावकों को संकल्पी हिंसा का त्याग करने एंव अन्य हिंसाओं से बचने का निर्देश दिया गया है२२३ | सत्य ___ मुनियों के लिए प्राणों पर संकट आने पर भी सत्य पर अडिग रहना उनका सत्य महाव्रत है। जैन आगम ग्रंथों में कहा गया है कि सत्य का आश्रय लेने वाला मृत्यु से तैरकर भी पार हो जाता है२२४ / हिंसात्मक एंव पीड़ात्मक सत्य बोलने को त्याज्य बतलाया गया है२५ / क्रोध, लोभ, भय तथा हास्य का परित्याग एंव शास्त्रों के अनुसार कहे गये वचनों को सत्यमहाव्रत के अन्तर्गत लिया गया है२२६ | जैन सिद्धान्तों के अनुसार श्रावक को सत्याणुव्रत का पालन करना गावश्यक बताया गया है२२७ / प्राणों पर संकट आ पड़ने पर श्रावक को झूठ बोलने की अनुमति तो दी गयी है लेकिन प्रायश्चित आवश्यक माना गया है। अचौर्य बिना दिये हुए किसी की कोई वस्तु न लेना अचौर्य महाव्रत कहा गया है२२८ | जैन भिक्षु को आवश्यकतानुसार दोषरहित वस्तु लेने का निर्देश दिया गया है२२६ | परिमित एंव तपश्चरण योग्य आहार श्रावक की प्रार्थना पर विधि के अनुसार लेना इस महाव्रत के अन्तर्गत आता है२३० | चोरी का धन, पराये धन की लिप्सा, दूसरे को