________________ 72 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास हैं - पदम, महापद्म, तिगिच्छ, केशरी, महापुण्डरीक एंव पुण्डरीक। इन सरोवरों से चौदह नदियाँ निकली हैं जिनमें सात तो पूर्व सागर में एंव सात पश्चिम सागर में प्रवेश करती हैं। उत्तर कुरु एंव देवकुरु जम्बूद्वीप में विदेह क्षेत्र के आगे वैदूर्यमणि नील कुलाचल एंव सुमेरु पर्वत के मध्य स्थित प्रदेश में उत्तर कुरु एंव सुमेरु एंव निषध कुलाचल के मध्य स्थित प्रदेश में देवकुरु नामक भोगभूमियों की स्थिति बतलायी गयी है७ भोगभूमि होने के कारण यहाँ के निवासियों की सभी इच्छाएं कल्पवृक्षों से पूरी होती थीं इन कल्पवृक्षों की संख्या दस बतलायी गयी है। उत्तरकुरु का वर्णन जैनेवर साहित्य में भी मिलता है। महाभारत के अनुसार उत्तरकुरु मेरु के उत्तर में था जहाँ हिमवन्त को पारकर पहुँचते थे / उत्तरकुरु की स्थिति पामीर पठार के उत्तर में बतलायी गयी है। ___उत्तरकुरु एंव देवकुरु ग्यारह हजार आठ सौ योजन दो कला प्रमाण विस्तृत माने गये हैं। इनकी प्रत्यंचा त्रेपन हजार और धनुपृष्ठ छह हजार चार सौ अठारह योजन बारह कला है। इन दोनों कुरु-प्रदेशों का वृत्तक्षेत्र इकहत्तर हजार एक सौ तैंतालीस योजन तथा एक योजन के नौ अंशों में चार अंश प्रमाण है१ देवकुरु की स्थिलि सीतोदा नदी के दूसरे तट पर निषधाचल के समीप स्थित शाल्मलीवृक्ष की दक्षिण दिशा को छोड़कर अन्य दिशाओं में मानी गयी है। इस स्थान पर वेणु एंव वेणुधारी देव निवास करते हैं अतएव वेणधारी देव देवकुरु में इष्ट माने गये हैं। धातकी खंड द्वीप संख्यात द्वीप समुद्रों को पाकर धात-की खण्ड द्वीप की स्थिति बतलायी गयी है। धातकी खण्ड द्वीप का विस्तार जम्बूद्वीप से दुगुना है / इसका विस्तार चार लाख योजन विस्तार वाला चूड़ी के आकार का लवण समुद्र से घिरा हुआ है। इस धातकी खण्ड द्वीप में भी प्रत्येक मेरु की अपेक्षा भारत आदि सात क्षेत्र एंव हिमवान आदि छह कुलाचल है। पुष्करद्वीप कमल के विशाल चिन्ह से युक्त पुष्करद्वीप कालोदधि को चारों ओर से घेरकर स्थित है। पुष्करद्वीप का अर्धभाग मानुषोत्तर पर्वत से घिरा हुआ है इसलिए इसे पुष्करार्द्ध माना गया है। इष्वाकार पर्वतों से यह पूर्व पुष्करार्द्ध एंव पश्चिम पुष्करार्द्ध में विभाजित है। मानुषोत्तर पर्वत की परिधि का विस्तार एक करोड़ छत्तीस हजार सात सौ तेरह हैं। इन दोनों खण्डों में धात-की खण्ड द्वीप की भांति मेरु,