________________ जैन इतिहास का विषय और विकास 57 व्याख्यात्मक साहित्य में इतिहासकारों ने पूर्व प्रचलित परम्पराओं को प्रतिपादित किया है। व्याख्यात्मक साहित्य में नियुक्तियाँ अपना विशेष स्थान रखती हैं | आगमों के विषय का प्रतिपादन करने के लिए इसमें अनेक कथानक, उदाहरण, दृष्टान्तों का उल्लेख किया गया है। संक्षिप्त एंव पद्यमय होने के कारण नियुक्तियों द्वारा धर्मिक सिद्धान्तों का प्रचार एंव प्रसार जनसाधारण में हुआ। आचारांग, सूत्रकृतागों-सूर्याप्रज्ञप्ति व्यवहार कल्प, दशाश्रुतस्कन्ध उत्तराध्ययन, आवश्यक, दशवैकालिक एंव ऋषिभाषित इन दस सूत्रों पर नियुक्तियाँ लिखी गयी। इन नियुक्तियों की रचना बल्लभी वाचना के समय ईसवी सन् की पॉचवी छठी शताब्दी के पूर्व ही हुयी होगी। आगमों पर लिखे गये भाष्य साहित्य का समय चौथी पाँचवी शताब्दी ई०वी० मान्य किया गया है। भाष्यों में आगमों में वर्णित अनुश्रुतियों एंव लौकिक कथाओं के द्वारा निर्ग्रन्थों के परम्परागत प्राचीन आचार विचारों की विधियों का प्रतिपादन किया गया है। इसमें निशीथ व्यवहार भाष्य एंव बृहत्कत्पभाष्य अपना विशेष स्थान रखते हैं। छठी शताब्दी ई०वी० में आगम ग्रन्थों पर गद्यात्मक संस्कृत मिश्रित प्राकृत भाषा में चूणियाँ लिखी गयी। चूर्णी साहित्य में रीतिरिवाज, मेले, त्यौहार, व्यापार के मार्ग आदि का ज्ञान होता है। आगमों पर लिखी गयी टीकाओं में लौकिक एंव धार्मिक कथाओं, जनश्रुतियों, अर्द्धऐतिहासिक एंव पौराणिक परम्पराओं द्वारा जैन श्रमणों के आचार-विचार प्रतिपादित किये गये हैं। आगमों के प्रमुख टीकाकार हरिभद्र, शीलांक, शान्तिसूरि-नेमिचन्द्रसूारे अभयदेवसूरि ओर मलयगिरि आदि आचार्य हैं। धार्मिक निवास स्थान आगम ग्रंथों से ज्ञात होता है कि श्रमणों का समाज में आदर का स्थान था। श्रमणों को चातुर्मास के अतिरिक्त किसी एक विशेष स्थान पर न रहने का निर्देश दिया गया। इसी कारण जैन श्रमण एक जनपद से दूसरे जनपद में विहार करते हुए धर्म का उपदेश करते थे। ये प्रायः नगर एंव ग्राम के पास बने हुए चैत्यों अथवा उद्यानों में रहते थे। राजकीय वर्ग के सदस्य एंव जन सामान्य उनके दर्शनों को जाते एंव आवश्यक वस्तुए भेट करते थे। वैराग्य ये श्रमण सांसारिक भोग विलास की वस्तुओं को नाशवान एंव क्षणभंगुर