________________ जैन इतिहास लेखकों का उद्देश्य में स्त्री अपहरण एंव वेश्यावृत्ति आदि प्रथाएं प्रचलित थी। जैनाचार्यों ने इन कुरीतियों से बचाने के लिए कथा ग्रन्थ एंव चरितकाव्य लिखे। जैन पुराणों एंव चरितकाव्यों में इतिहास लेखकों ने तीर्थकर एंव जैनधर्मानुयायी के माता पिता का वैभव, गर्भ, जन्म, क्रीड़ा शिक्षा, दीक्षा आदि का वर्णन करके तत्कालीन समाज का चित्रण किया है। जैन इतिहास लेखकों ने अपने साहित्य को लोकरुचि के अनुकूल बनाने के लिए उसे सामाजिक जीवन के निकट लाने का प्रयत्न किया है। जैन साहित्य की उपदेशात्मकता गृहस्थ जीवन के अधिक निकट हैं। समयानुकूल श्रृंगारिक प्रवृत्तियों का वर्णन किया है। सम्पूर्ण प्राणीमात्र का कल्याण करना ही जैनधर्म है। जीवात्मा का लक्षण सामाजिक माना गया है वैयक्तिक नहीं। जैन संस्कृति जितना आध्यात्मिक साधना पर बल देता है उतना ही राष्ट्र नगर एंव ग्राम के प्रति अपने कर्तव्यों को धर्म के रुप में वर्णन करता है। विशेषताएं कालनिर्देश ___ जैन इतिहास लेखकों की एक विशेषता तिथियुक्त साहित्य का निर्माण करना है / जैन साहित्य की सभी विधाओं पुराण, चरितकाव्य कथासाहित्य एंव अभिलेखीय साहित्य में उनका रचनाकाल, एंव सम्बन्धित विषय की सभी घटनाओं का कालक्रमानुसार वर्णन पाया जाता है। भारतवर्ष का तिथिक्रम इतिहास जानने में उत्कीर्ण लेखों से अत्याधिक सहायता प्राप्त होती है। अभिलेखों में प्राप्त काल-निर्देश राज्य करने वाले राजा का, राजा द्वारा दान, मन्दिर, निर्माण एंव धार्मिक स्थानों की यात्राऐं एंव राजाओं द्वारा की गयी विजयों, युद्धों एंव महत्वपूर्ण उपलब्धियों से सम्बधित रहता है। लेखों में राजा के राज्यकाल के वर्षों का उल्लेख प्राप्त होता है। चालुक्य राजा विक्रमादित्य के राज्यकाल के विभिन्न लेखों में विभिन्न वर्षों में किये गये धार्मिक कार्यों का उल्लेख प्राप्त हैं। कदम्बवंशीय राजा रविवर्मा के उन राज्यवर्षो की जानकारी होती है जिसमें उसके द्वारा दानादि कार्य किये गये। लेखों में यह काल निर्देश मास, वार, तिथि, पक्ष एंव सम्वतों के उल्लेखों से भी प्राप्त होता है। विशेषकर दान के उल्लेखों में मास, वार, शुक्ल कृष्णपक्ष, संक्रान्ति-ग्रहण आदि का उल्लेख किया जाता था। विभिन्न राजवंशों के वर्णन में सम्बतों का प्रयोग पाया जाता है। लेखों में उसका उत्कीर्ण समय सम्वतों में दिया होता है। जिससे तत्कालीन समय में प्रचलित सम्वतों की जानकारी होती है। साहित्यिक एंव अभिलेखीय साहित्य से ज्ञात होता है कि सर्वप्रथम जैन ग्रंन्थों में महावीर निर्वाण सम्वत् का उल्लेख प्राप्त होता है। साहित्य में महावीर सम्वत्