________________ जैन इतिहास लेखकों का उद्देश्य जीवन चरित्र प्राप्त होता है। शीलाचार्य ने 6 प्रति वासुदेवों को छोड़कर 54 पुरुषों को उत्तमपुरुष कहा है। त्रिशष्ठिशलाकापुरुष चरित के पहले पर्व में आदितीथकर ऋषभ एंव चक्रवर्ती भरत के चरित्र का निरुपण किया गया है। दूसरे पर्व में तीर्थकर अजितनाथ एंव चक्रवर्ती सगर का चरित्र है। तीसरे पर्व में - संभव, अभिनन्दन, सुमति, पद्मप्रभु-सुपार्श्व, चन्द्रप्रभ पुष्पदन्त एंव शान्तिनाथ इन आठ तीर्थकंरों के चरित्र है। चतुर्थ पर्व में - दो चक्रवतियों (मधवा एंव सनतकुमार) पॉच वासुदेवों - (त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयम्भू, पुरुषोत्तम व पुरुष सिंह) एंव पॉच बलभदों (अचल, विजय, भद्र, सप्रभ एंव सुदर्शन) एंव पॉच तीर्थकरों- (श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनन्त एंव धर्मनाथ के चरित्रों का वर्णन है। पंचम पर्व में - तीर्थकर शान्तिनाथ एंव चक्रवर्ती शान्तिनाथ के चरित्र हैं। छठे पर्व में - चार तीर्थकर (कुन्थ, अरिनाथ, मल्लिनाथ एंव मुनिसुव्रत स्वामी) चार चकवतियों - (कुन्थु, अरिनाथ, सुभौम एंव पदम) दो वासुदेवों (पुरुष पुण्डरीक एंव दत्त) दो प्रतिवासुदेव - (बलि व प्रहलाद) दो बलभद्र (आनन्द एंव नन्दन) कुल 14 शलाका पुरुषों का चरित्र निरुपित किया गया है। सांतवे पर्व में - तीर्थकंर नमि, चक्रवर्ती- हरिषेण एंव जय, वासुदेव-लक्ष्मण प्रतिवासुदेव-रावण एंव बलभद्र-राम इनका चरित्र वर्णन है। आंठवें पर्व में - तीर्थकर नेमि, वासुदेव-कृष्ण, प्रतिवासुदेव-जरासन्ध, बलभद्र-बलदाऊजी ऐसे चार शलाकापुरुषों का वर्णन है। नवे पर्व में - तीर्थकंर पार्श्वनाथ एंव चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त के चरित्र हैं। दसवें पर्व में - तीर्थकर महावीर का चरित्र है। त्रिशष्ठिशलाका पुरुष चरित से ज्ञात होता है कि बारह चकवर्तियों में से शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ एंव अरिनाथ एक ही भव में चक्रवर्ती एंव तीर्थकर दोनों ही हुए हैं। आठवें बलभद्र वासुदेव लक्ष्मण एंव प्रतिवासुदेव रावण का चरित्र पद्मपुराण एंव पउमचरिय में भी प्राप्त होता है एंव गुणभद्रकृत उत्तरपुराण में भी इन त्रेशठशलाका पुरुषों का चरित्र निरुपण किया गया है। इन त्रेशठ शलाका पुरुषों से सम्बन्धित विभिन्न चरित काव्यों से ज्ञात होता है कि चौबीस तीर्थकरों द्वारा केवल ज्ञान प्राप्त किया गया। आदि तीर्थकर ऋषभ को वटवृक्ष के नीचे, अभिनन्दन स्वामी ने सरलद्रुम के नीचे, सुमतिनाथ ने सच्छायप्रियंग के नीचे, पद्मप्रभु ने शालवृक्ष के नीचे चन्द्रप्रभ ने नागवृक्ष एंव पुष्पदन्त ने मालतीवृक्ष के नीचे, सुपार्श्व को शिरीष महाद्रुम के नीचे शीतलनाथ एंव श्रेयांस को प्लक्षवृक्ष के नीचे धर्मनाथ एंव शान्तिनाथ को दधिपर्ण एंव नन्दीवृक्ष के नीचे, वासुपूज्य को पाटली लता की छाया में, विमल एंव अनन्तनाथ ने जामुन एंव पीपल वृक्ष के नीचे, कुन्थुनाथ