________________ 42 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास सुसंस्कृत मानव जाति के रुप में दिखाया है। इस तरह दो विरोधी सिद्धान्तों के प्रति समान भाव रखकर हिन्दू तथ्यों का जैनीकरण करना उनका मुख्य उद्देश्य था। जैनधर्म के आश्रयदाताओं से सम्बन्धित घटनाओं कियाकलापों का वर्णन जैनाचार्यों एंव जैनधर्म को राजकीय एंव सामान्य वर्ग के व्यक्तियों द्वारा पर्याप्त सहायता प्राप्त होती थी। जैनाचार्यधनादि भौतिक कामनाओं से परे थे राजकोष से प्राप्त धन द्वारा साहित्य निर्माण करना उनका उद्देश्य था। इसी कारण जैनाचार्यों एंव इतिहास लेखकों ने राजाओं एंव कतिपय अन्यान्य व्यक्तियों के धर्मानुकूल जीवन से प्रभावित होकर उन्हें अपने काव्यों का नायक बनाया एंव उनकी प्रशस्तियाँ लिखकर ग्रन्थ प्रणयन किये। इस दृष्टि से चरितकाव्य अपना विशेष स्थान रखते आचार्य हेमचन्द्र ने चालुक्य राजा कुमारपाल के वंश की कीर्तिगाथा में द्वयाश्रय काव्य” लिखा जिसमें गुजरात के चालुक्य राजवंश की अणिहिलपुर में उत्पत्ति से लेकर सम्पूर्ण राज्यवंश के राज्यकाल तक का वर्णन है। इस चालुक्य वंश के राजाओं से अन्य राजाओं भोज, चेदिराज, अर्णोराज के युद्ध का वर्णन, धार्मिक कार्यो-मन्दिर निर्माण आदि एंव कुमारपाल संवत् चलाने का वर्णन है। विशेषकर चालुक्य वंश नृप सिद्धराज जयसिंह एंव कुमारपाल का वर्णन करना है। जयसिंह द्वारा देवी चमत्कारों से पूर्ण विजयों धार्मिक कार्यों एंव स्वर्गप्राप्ति का एंव इसी तरह कुमारपाल द्वारा कोकणाधीश-मल्लिकार्जुन पर विजयप्राप्ति से दक्षिणाधीश होने, पश्चिम दिशा के अनेक नृपों द्वारा अधीनता स्वीकार करने, काशीमगध, गोड़ काव्यकुन्ज दशार्ण वेदि, जंगल देश-आदि राजाओं द्वारा अधीनता ग्रहण करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। __यशःपाल कवि ने कुमारपाल के उत्तराधिकारी अजयपाल के राज्य काल में (सन् 1174-77) "मोहराज पराजय”.७ नाटक की रचना की। जिससे कुमारपाल के जैनाचार्य हेमचन्द्र के जैनधर्मोपदेश से प्रभावित होने, प्राणि हिंसा को रोकने, अदत्तमृतधनापहरण त्याग करने आदि की जानकारी होती है। कुमारपाल द्वारा जैनधर्म को राजकीय प्रश्रय दिया गया इसके साथ ही कुमारपाल द्वारा थारापद्र (आधुनिक थराद, बनासकोठा) में कुमार विहार बनवाने एंव जैन तीर्थकर भगवान महावीर के रथयात्रा महोत्सव मनाने की जानकारी होती है। इस नाटक की विशेषता है कि प्राणीमात्र के हृदय के सभी भावों को पात्ररुप में चित्रित किया गया है। यशःपाल कवि अजयपाल राजा का मन्त्री या प्रान्तीय शासक रहा होगा / अभिलेखों से भी राजा भीमदेव प्रथम द्वारा सन् 1066 में वायड अधिष्ठान की वसतिका के लिए भूगिदान देने एंव भीमदेव द्वितीय द्वारा बेरावल के चन्द्रप्रभमन्दिर