________________ जैन इतिहास लेखकों का उददेश्य 36 दक्षिण भारत के आठवी शताब्दी के शिलाहार वंश के राजाओं को विद्याधर नील एंव महानील का वंशज माना जाता है। क्योंकि इस वंश के राजाओं ने अपने शिलालेखों में अपने को “जीमूतवाहन विद्याधर के वंशज तथा “तथासुर के अधीश्वर" कहा है। इनके वंशजों द्वारा तगरपुर पर राज्य किया गया होगा। पद्मगुप्त कृत "नवसाहसांकचरित्र" में नर्मदा के दक्षिण में एक विद्याधर राजकुल का उल्लेख मिला है / कथासरित्सागर से विद्याधरों के राजा जीमूतवाहन का होना स्पष्ट है। राक्षस एंव वानरवंश रविषेणाचार्य के पद्मपुराण में रावण एंव हनुमान को राक्षस एंव वानरवंश के नररत्न माने गये हैं। रावण आठवॉ प्रतिवासुदेव था जो लक्ष्मण वासुदेव का विरोधी था। पद्मपुराण से स्पष्ट होता है कि विद्याधर वंश से ही राक्षस एंव वानरवंश की उत्पत्ति हुयी थी। दूसरे तीर्थकर अजितनाथ के तीर्थकाल में विजयार्द्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी के चकवालनगर के राजापूर्णधन को विहायोतिलक नगर के राजा सहस्त्रनयन ने सम्राट सागर की सहायता से हरा दिया था। समवसरण में पूर्णधन के पुत्र मेधवाहन द्वारा शरण जाने पर तीर्थकर अजितनाथ के उसे लवण समुद्र के राक्षसद्वीप का राज्य दे दिया। मेधवाहन के वंश ने बहुत समय तक उस राक्षस द्वीप पर शासन किया इसी वंश में एक राक्षस नामक पराक्रमी राजा हुआ और उसी के नाम से इस वंश का नाम राक्षस वंश हो गया। इस राक्षस राजा के पुत्र कीर्तिधवल का मेधपुर के विद्याधर नरेश श्री कंठ से वैवाहिक सम्बन्ध था। उसकी मृत्यु के पश्चात् कीर्तिधवल को लंका के उत्तरभाग तीन सौ योजन दूर समुद्र के मध्य वानरद्वीप का शासनाधिकारी बनाया गया। इस वानरद्वीप में वनमानुष निवास करते थे। श्री कंठ ने अपने राज्यकाल में किहकुदपर्वत पर किंहकूद नगर स्थापित किया। उसके वंश में अमरप्रभ राजा ने अपनी ध्वजा का चिन्ह रखना प्रारम्भ किया और यहीं से यह वानरवंशी प्रसिद्ध हुए। ये राक्षस एंव वानरवंश के व्यक्ति अहिंसाधर्म के अनुयायी एंव तीर्थकंरों में श्रद्धा रखते थे। हिन्दू धर्म में मान्य तथ्यों का जैनीकरण करना पौराणिक परम्परा में धर्म प्रचार हेतू कथाओं और आख्यानों को महत्वपूर्ण प्रचलन था परिणामस्वरुप जैन इतिहास लेखकों ने तत्कालीन समय में प्रचलित धार्मिक लोक मान्यताओं की उपेक्षा नहीं की और उनके जैनीकरण की प्रकिया अपनायी। हिन्दू धर्म के अन्तर्गत राम-लक्ष्मण तथा कृष्ण एंव बलराम को अवतार पुरुष माना जाता है। जिनके चरित्ररुप में रामायण एंव महाभारत ग्रन्थों को लिखा गया। प्रथम शताब्दी ई०पू० में सर्वप्रथम बाल्मीकि द्वारा रामायण की रचना की गयी