________________ 32 . जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास लिखे गये सर्वप्रथम सुमईनाहचरिय के रचयिता सोमप्रभाचार्य के गुरु भाई एंव अभयदेवसूरि के शिष्य लक्ष्मणगणि ने कुमारपाल के राज्यारोहण वर्ष सं० 1166 में "सुपासनाहचरिय"१६ लिखा इसमें सुपार्श्वनाथ के पूर्वभवों का वर्णन करते हुए तीर्थकर जन्म का वर्णन किया गया है। ग्रन्थ से मेरु पर्वत पर देवों द्वारा जन्माभिषेक करने, अनेक आसनों, बिबिधतपों, सम्यग्दर्शन का माहात्म्य, बारह श्रावक व्रत, उनके अतिसार आदि के विस्तृत वर्णन पाये जाते हैं। जो तत्कालीन आचार व्यवहार, रीतिरिवाज परम्पराओं, राजकीय परिस्थिति एंव नैतिक जीवन को स्पष्ट करते हैं। जालिहर गच्छ के देवसूरि एंव किसी विवुधाचार्य की प्राकृत रचनाओं का उल्लेख प्राप्त होता है। आठवे तीर्थकंर चन्द्रप्रभ के जीवन चरित पर संस्कृत एंव प्राकृत में अनेक चरितकाव्य लिखे गये हैं। सर्वप्रथम सिद्धसरि के शिष्य वीरसरि ने सं० 1138 में प्राकृत में की “चन्दप्पहचरिय” की रचना की | जिनेश्वर-सूरि कृत चंदप्पहचरियं में 40 गाथाएं है२२ / देवगुप्तसूरि उपवेशंगच्छीय यशोदेव अपरनाम धनदेव ने सं० 1176 में चन्द्रप्रभचरित लिखा२३ एंव चतुर्थ रचना बड़गच्छीय हरिभद्रसूरिकृत 8031 श्लोक प्रमाण 12 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में की गयी। संस्कृत भाषा में “चन्द्रप्रभचरित महाकाव्य५, सर्वप्रथम आचार्य वीरनन्दि ने 11 वीं शती के प्रारम्भ में की। काव्य से इनकी गुरुपरम्परा (वीरनन्दी के गुरु अभयनन्दि, अभयनन्दि के विवुधगुणनन्दि गुरु थे), प्राप्त होती है। ये देशीगण के आचार्य थे। इस काव्य में 18 सर्ग एंव 1661 पद्य है इस काव्य को उदयांक माना गया है क्योंकि सभी सर्गो के अन्त में "उदय" शब्द आया है। असग कवि द्वारा रचित चन्द्रप्रभचरित भी प्राप्त होता है | ११वें तीर्थकर श्रेयांसनाथ पर दो प्राकृत पौराणिक काव्य उपलब्ध होते हैं। सर्वप्रथम सं० 1172 में वृहदगच्छीय जिनदेव के शिष्य हरिभद्र द्वारा एंव चन्द्रगच्छीय अजितसिंहसूरि के शिष्य देवभद्र द्वारा सं० 1332 में रचना की गयी२८ | 15 वें तीर्थकर धर्मनाथ के जीवन चरित पर हरिचन्द्र द्वारा लगभग सं० 1257 में "धर्मशर्माभ्युदय” काव्य संस्कृत भाषा में लिखा गया / कथा वस्तु का आधार उत्तरपुराण का 61 वॉ पर्व है / इस काव्य में धर्मनाथ द्वारा उल्कापातों को देखकर विरक्त होना, दीक्षा, तपस्या, केवल–ज्ञान, समवसरण में उपदेश आदि देने का वर्णन किया गया है। 21 वें सर्ग में जैनधर्म एंव दर्शन के सिद्धान्तों का वर्णन है। प्राकृतिक वर्णन की दृष्टि से सफल काव्य है। धर्मशर्माभ्युदय की काव्य रचना नेमिनिर्वाण एंव चन्द्रप्रभचरित से मिलती है। 16 वें तीर्थकर शान्तिनाथ का जीवन चरित्र सर्वप्रथम पूर्णतल्लगच्छीय देवचन्द्राचार्य द्वारा सं० 1160 में गद्यपद्य मिश्रित प्राकृत भाषा में लिखा गया। यह अप्रकाशित है। एक लधु प्राकृत रचना जिनवल्लभसूरि एंव अन्य सोमप्रभसूरि रचित