________________ जैन इतिहास की उत्पत्ति एवं विकास oc टीका। 33. आचांराग 3, भावधूलिका 3, सूत्र 401 / / 34. कुन्दकुन्दाचार्यकृत प्राकृतभक्तियाँ, यतिवृषभकृत तिलोयपण्णति, पूज्य-पादकृत दशभक्ति आचांराग, उत्तराध्ययन, भगवती आदि सूत्र ह०पु० 2/417 उ०पु० 74/251 35. हि०क०इ०पी० ख-२ पृ० 462, इ०लौ०स्ट०भा० 3 पृ० 236-36, केहि०इ०भा--२ पृ० 153 36. आ०सू० श्रुतस्कन्ध 2/23/361-2 37. महावीरचरियं गाथा 1358-1365 पत्र 58/1, महावीरचरियं - (गुणभद्रिकृत) 25/2 त्रिश०पु०च० 10/4/652-657 38. आवश्यकचूर्णि प्रथम भाग पत्र 322 / 36. जैन मान्यता के अनुसार - अत्यन्त इन्द्रियनिग्रही एंव महान जगत विजयी ही ___“अर्हत जिन' कहे जाते हैं एंव उनके अनुयायी जैन कहे जाते हैं। 40. त्रिश०पु०च० 10/5/10, 36-47 / 41. “ह०पु०", वीर विहार मीमांसा', जैन सिद्धान्त भास्कर भाग 12 किरण। पृ० 16-22 में विहार किये गये स्थानों का विस्तृत उल्लेख है। 42. उ०पु० 506, 510 जयधवला खण्ड 1 पृ० 81 तिय तिलोयपण्णति भाग 1/4/1208 पृ० 302 पूज्यपादीयनिर्वाण भक्ति 16-17 वॉश्लोक 43. त्रिश०पु०च० 10/13/266 44. जै०शि० ले०सं० भाग 2 लेख नं० 2 पृ० 6 पं० 14-15 45. त०सू० 6/6 46. त०सू० 1/1/2 47. त०सू० 7/1 48. जै०शि०ले०संग्रह भाग 2 ले०स० 100 पृ० 75 आ०पु०श्लोक 6) 46. जै०व्या० 2.3,4 50. जै०शि०ले०सं० भाग 2 ले०सं० 105 पृ० 83 / 51. जै०शि०ले० सं० भाग 1 ले०सं० 40, 64 52. जैनेन्द्र प्रक्रिया का नाम शबदार्णव प्रक्रिया भी माना गया है। 53. जै०शि०ले०संग्रह भाग 1 भूमिका पृ०७२। 54. इसका दूसरा नाम राधवपाण्डवीय महाकाव्य भी है। 18 सर्गों में राधव एंव पाण्डवों अर्थात् रामायण एंव महाभारत की कथा लिखी गयी है। इस ग्रंथ पर दो टीकाएं लिखी गयी है। जैन साहित्य और इतिहास पृ० 106 55. यह एक शब्दकोक्ष है। नाममालाकोष श्लोक 5,6,7 56. जै०सा०और इ० पृ० 110 /