________________ जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास 101. काव्यादर्श 1/32 १०२.हरिषेण ने अपनी “धर्मपरिकरवा”, पुष्पदन्त ने “महापुराण कनकामर ने अपने "करकंडुचरिउ, एंव स्वयम्भूदेव ने अपने ग्रन्थों में चतुर्मुख का स्वतन्त्र रुप से स्मरण किया है - “भारतीय विद्या” वर्ष 2 अंक 1 में नाथूराम प्रेमी का लेख / १०३.अपभ्रंश काव्यत्रयी पृ० 67-68 / १०४.पुष्पदन्त ने अपने “महापुराण वि०सं० 1016 एंव हेमचन्द्र ने अपने छन्दोनुशासन में स्वयम्भू का उल्लेख किया है - निर्णयसागर प्रेस की आवृत्ति पत्र 14 पं० 16 / १०५.जै०सा० और ई०पृ० 166 १०६.रधुवंश, कुमारसंभव, शिशुपालवध, किरातार्जुनीय एंव भट्टि / १०७.अडमार ग्राम से प्राप्त तीन ताम्रपत्र प्राप्त हुए हैं उनमें से एक प्रशस्तिकार का नाम ईशान है। पाण्डेय ने इसका समय ई०वी० 700 के लगभग बताया है। 108. . प०च० (स्वयम्भू) संधि१ कड़वक 2/3-5 पउमचरिउ के अन्तिम अंश के पद्य 3.7.6,10 १०६.प०च० (स्वयम्भू 2/23/6) 110. राष्ट्रकूट राजा कृष्ण द्वितीय ने अपभ्रंश भाषा के महाकवि पुष्पदन्त को : राज्याश्रय प्रदान किया था और महापुराण जैसे विशालकाय "काव्यगुण पंडित ग्रंथ का प्रणयन करवाया। 111. केवल हरिवंशपुराण को जर्मनी विद्धान माल्सडर्फ ने जर्मनभाषा में प्रकाशित किया है - जै०सा०व०इ० पृ० 235 ११२.किचांन्यवदिहास्ति जैनचरित नान्यत्र तद्धिद्यते। - द्वावेतौ भरतेश पुष्पदन्तौ सिद्धययोरी दृशम् / / 113. प्रभाचन्द्रकृत टिप्पणी परमार राजा जयसिंह देव के राज्यकाल में और श्री चन्द्र का भोजदेव के राज्यकाल में लिखी गयी। 114. जै०सा०एवं इ० पृ० 337 ११५.णायकुमारचरिऊ (नागकुमारचरित) 1/2/2 ११६.जैन साहित्य संशोधक वर्ष 3 अंक 3 में प्रकाशित। ११७.भारतीय जैन साहित्य संसद सन् 1665 पृ० 6 /