________________ 18 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास कन्नड़ साहित्य जैन कन्नड़ साहित्य में मौखिक चेतना तरगित होती है। गम्भीर चिन्तन, सम्मुन्नत हार्दिक प्रसार, एंव गोदावरी एंव कावेरी के द्वन्द्व इस साहित्य में मिलते हैं। नवीं शताब्दी में राष्ट्रकुट राजा नृपतुंग के राज्यकाल से जैनकवियों ने कन्नड़ में काव्यरचना का श्रीगणेश किया। नवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में राष्ट्रकूट राजा कृष्ण द्वितीय के आश्रय में महाकवि गुणवर्म ने कन्नड़ भाषा में महापुराण की रचना की। कृष्ण ने कन्नड़ भाषा के कवि पोत्र को "उभयभाषाविचक्रवर्ती' की उपाधि से विभूषित किया था। पोत्र ने कृष्ण तृतीय (867-864 ई० वी०) के समय शान्तिनाथपुराण' की रचना की। दसंवी शताब्दी में पश्चिमी चालुक्य वंश के संस्थापक तैलप ने कन्नड़भाषा के जैन कवि रन्न को आश्रय दिया। तैलप के उत्तराधिकारी सत्याश्रय ने जैनमुनि विमलचन्द्र पण्डित देव को अपना गुरु बनाया। तैलप ने कवि रन्न को 663 ई में "अजितपुराण" या "पुराणतिलक-महाकाव्य के पूर्ण होने के उपलक्ष्य में कविचक्रवर्ती की उपाधि से विभूषित कर स्वर्णदण्ड, चंवर, छत्र, गज आदि वस्तुएं देकर पुरस्कृत किया। कवि पम्प ने "आदिपुराण चम्पू एंव भारत या "विक्रमार्जुन विजय' ग्रंथ की रचना की। भारतग्रंथ वि० सक० 688 में पूर्ण हुआ। दक्षिण के चालुक्य वंशीय अरिकेशरी ने कविपम्प की रचना पर प्रसन्न होकर धर्मपुर नामक ग्राम दान में दिया था। ग्रंथ से अरिकेशरी की वंशावली ज्ञात होती है। कन्नड़ भाषा में "चन्द्रप्रभचरित' नामक ग्रंथ की रचना आग्गल कवि ने वि०सं० 1146 में की। आग्गल कवि ने श्रुतकीर्ति को अपना गुरु बतलाया है। ओडडय कवि द्वारा विरचित कविगरकाव इतिवृत वस्तुव्यापार वर्णन एंव दृश्यचित्रण की दृष्टि से बेजोड़ है। नयसेन ने “धर्मामृत' नामक कथाग्रन्थ की रचना संस्कृत एंव कन्नड़ मिश्रित भाषा में रचना की। जो साहित्य के क्षेत्र में नयी देन है। महाकवि जन्न ने "यशोधरचरित एंव "अनन्तनाथचरित' की रचना की है। इन ग्रंथों के अतिरिक्त वर्णपार्य द्वारा रचित 'नेमिनाथ चरित नेमिचन्द्र का "अर्द्धनेमिपुराण" गुणधर्म का पुष्पदन्तपुराण, रत्नाकरवी के भरतेशवैभव एंव शतक त्रयं ग्रंथों का उल्लेख मिलता है। माधुर्य एंव संगीत तत्व में भरतेशवैभव गीतगोविन्द की अपेक्षा उच्चकोटि का है११७।। चन्द्रालोक एंव दण्डी के काव्यादर्श के आधार पर कन्नड में जैनाचार्यों ने अलंकार शास्त्रों का प्रणयन किया है। अतएव यह स्पष्ट है कि जैन इतिहास लेखकों ने कन्नड़भाषा में अपने साहित्य की विभिन्न विधाओं का सृजन कर कन्नड़ साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।