________________ जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास है। वह कहता है - “जानकी अपने मन्दिर से क्या निकली, मानों हिमवान् से गंगा निकल पड़ी हों, छन्दस् से गायत्री निकल पड़ी हो एंव शब्द से विभक्ति निकल पड़ी हो०६। स्वयम्भू की दूसरी अपभ्रंश रचना "रिट्ठणेभिचरिउ या हरिवंशपुराण है। ग्रंथ में तीन काण्ड हैं - यादव,कुरु एंव युद्ध / इनमें कुल 112 संधियाँ है। यादव में 13, कुरु में 16 एंव युद्ध में 60 संधियाँ हैं। यादव काण्ड में कृष्ण के जन्म, बालक्रीड़ा, विवाह आदि वर्णन काव्यरीति से किये गये हैं कुरुकाण्ड में कौरव एंव पाण्डवों के जन्म, कुमारकाल, शिक्षा, परस्पर विरोध धूतक्रीड़ा एंव वनवास का वर्णन तथा युद्धकाण्ड में कौरव एंव पाण्डवों के युद्ध का वर्णन रोचक एंव. महाभारत के वर्णन के समान है। स्वयम्भू का "पंचमीचरिऊ' नामक ग्रंथ भी कहा जाता है लेकिन अभी उपलब्ध नहीं हैं। स्वयम्भूकृत स्वयम्भूछन्द एंव व्याकरण भी ग्रंथ कहे जाते हैं। ____ अपभ्रंश में धवलकवि कृत एक अन्य हरिवंशपुराण भी मिलता है। ग्रंथ की उत्थानिका में “महासेनकृत सुलोचनाचरित' रविषणकृत “पद्मचरित जिनसेनकृत" हरिवंश, जटिल-मुनिकृत “बंरागचरित” असगकविकृत “महावीर चरित” जिनरक्षित श्रावक द्वारा विज्ञापित एंव जयधवला, चतुर्मुख एंव द्रोण कवि के नामोल्लेख कवि . के काल निर्णय में सहायक हैं। असग कवि का समय 688 ई० है अतएंव धवल कवि ने भी अपनी यह रचना दसंवी ग्यारहवीं शदी में की होगी। जिस प्रकार प्राकृत में “चउपन्नमहापुरिस चारिय’ की तथा संस्कृत में वेशठशला का पुरुषचरितों की रचना हुयी, उसी प्रकार अपभ्रंश में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा तिसटिझमहापुरस्सगुएासंकारु या महापुराण की रचना राष्ट्रकूट राजा कृष्ण द्वितीय के समय हुयी१० / यह शक सं० 887 में पूर्ण हुआ। यह महापुराण आदिपुराण एंव उत्तरपुराण में 23 तीर्थकर एंव अन्य महापुरुषों के चरित्र निरुपित है। उत्तरपुराण में पद्मपुराण एंव हरिवंशपुराण११ भी शामिल हैं। आदिपुराण में 80 एंव उत्तरपुराण में 42 संधिया हैं। यह एक ऐसा महाग्रंथ है जैसा कि कवि ने स्वयं कहा है - “इसमें सब कुछ हैं जो इसमें नहीं है वह कहीं नहीं है 112 | जैन पुस्तकभण्डारों में ग्रंथ की अनेकानेक प्रतियों प्राप्त होती हैं। इस पर अनेक टिप्पणी ग्रन्थ भी लिखे गये हैं जिनमें प्रभाचन्द्र एंव मुनिचन्द्र के उपलब्ध हैं।१३ | जसहरचरिऊ (यशोधर चरित) भी एक खण्डकाव्य है।१४ इसमें यशोधर नामक पुराण पुरुष का चरित वर्णित है। इसमें चार संधि है। यह कथानक जैन सम्प्रदाय में इतना अधिक प्रिय रहा है कि सोमदेव, वादिराज, वासवसेन, सोमकीर्ति, हरिभ्रद, क्षमाकल्याण आदि अनेक दिगम्बर एंव श्वेताम्बर लेखकों ने अपने ढंग से प्राकृत एंव संस्कृत में लिखा है।