Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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के विरोधियों में अनेक अवगुण आरोपित कर दिये गये हैं-जैसे राक्षस मनुप्यों को जीवित ही खा जाते थे। रावण अपनी पुत्रवधू से ही वलात् मोग कर लेता है आदि । कैकेयी का चरित्र भी कुत्सित और विकृत दिखाया गया है। वीर हनुमान को पूरी तरह वानर सिद्ध करने के लिए उनकी पूंछ भी दिखाई गई है। राम को पूरी तरह भगवान सिद्ध करने के लिए अहल्या, गवरी, केवट आदि के प्रसंग भी जोड़े गये हैं।
ऐसी कोई बात जैन रामायण में नहीं है। इसमें न तो कैकेई का कुत्सित रूप है, न रावण का। वीर हनुमान भी पूंछधारी वानर नहीं हैं किन्तु अति वीर, परम पराक्रमी और मेधावान, अनेक विद्यासम्पन्न, सच्चरित्र मनुप्य थे । सीताजी भी न भूमि से निकली, न भूमि में समाई ।।
इस प्रकार सभी पात्रों का तटस्थतापूर्वक वर्णन ही जैन श्रमणों को अभीप्ट रहा । अतः सभी का मानवीय धरातल पर उदात्त चित्रण हुआ है। __अतः डॉ० चन्द्र के शब्दों में यह कहना सर्वथा उचित होगा कि 'जैन
रामायण (पउम चरियं) में राम का चरित्र वाल्मीकि रामायण से ऊँचा उठता है।'
प्रस्तुत कथामाला में राम-चरित्र की रचना का भी यही उद्देश्य है कि तथ्यों का सही चित्रण किया जाय । राम-कथा में प्रक्षेपित की गई अलौकिक और चमत्कारी घटनाओं की सही जानकारी मिले। राम का उज्ज्वल और प्रेरणाप्रद चरित्र पढ़कर पाठक उनके गुणों से प्रेरणा ग्रहण करें और स्वयं अपने जीवन में उतारें। साथ ही जैन दृष्टि से राम-नरित क्या है, इसकी भी जानकारी हो जाय । कथामाला की शृंखला के अनुसार राम-कथा के पाँच भागों को एक ही जिल्द में बांधकर प्रस्तुत किया गया है, जो पाठकों के लिए सुविधा जनक ही रहेगा ।
-श्रीचन्द सुराना 'सरस' -वृजमोहन जैन