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( ३५ ) क्रियाओं के करने में ही वास्तविक में शान्ति समझी है इसी लिये वेह अनार्य कर्मों में ही लगी रहते हैं।
वास्तव में उन लोगों ने पूर्ण प्रकार से शान्ति के पा को जाना नहीं इस लिये वेइ शान्ति की खोज में भटकते फिरते हैं क्योंकि-साशावान् को समाथि कभी भी नहीं प्राप्त हो सक्ती रे जब समाधि की प्राप्ति होगी
"निराश को होगी। क्योंकि-संसार में आशा का ही । दुःख है जब किसी पदार्थ की आशा ही नहीं तो भला दुःल कहां से उत्पन्न हो सकता है।
निराश प्रात्मा ही शान्ति को सानन्द का अनुभव कर सकते हैं, अपितु संसार पक्ष से निराश होना चाहिए धम पक्ष से नहीं किन्तु धर्म पक्ष में वह सदैव कटिवद्ध रहता है
सर्व संसार के बन्धनों से छूटा हुमा भिक्षु जिस श्रानन्द का अनुभष कर सकता है उस अानन्द के शतांशवें भांग का चक्रवर्ती राजा भी अनुभव नहीं कर सकता।