________________
'. (३३)
छटा पाठ
साधु वृत्ति . सज्जनों तुम भली प्रकार जैन धर्म शिक्षावली के चौथे भाग में गृहम्द सम्बन्धी गृहस्थों का धर्म क्या है पठन कर चुके हो मगर अब तुम्हें हम यहाँ पर चंद वातें मुनियों के धर्म के बारे में बतलायेंगे यद्यपि मुनियों की भी कुछ वृत्ति उसी भाग में दरशा चुके हैं, वोभी मोटी २ आवश्यक वातें मुनियों सम्बन्धी जानने योग्य फिर यहां पर लिखते हैं। ___यह बात तो ससा में नि-विवाद प्राय: सिद्ध ही है __कि जैन मुनियों जैसी अपिन्स और सच्ची साधु वृत्ति
अन्य साधुषों में नहीं है जैन साधु जब से जैन मुनि का वेष धारण करते हैं तब से ही हर प्रकार के कष्टों को सहन करते हुये केवल धम क्रिया और संसार के उपकार के लिये ही अपने जीवन को व्यतीत करते हैं लोग अक. सर उन्हें मत द्वेष के कारण से तरह तरह के निरमूल दोष देते और उन्हें अप शब्द भी कहते हैं परन्त यह शांत: