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- मंगल" बुध" बृहस्पति" शुक्र" शनैश्चर" इन वारों का प्राचीन ज्योति शास्त्रों में नाम नहीं पाया जाता परन्तु .जो. अर्वाचीन काल के ग्रन्थ बने हुये हैं उन्हों में इन बारों का उल्लेख अवश्य किया हुआ है इस का कारण
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विद्वान्, जो यह बताते है कि जब से हिन्दुस्तान में
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-यवन लोगों का आगमन हुआ है तथा से इन चारों का इस देश में प्रचार हुआ है।
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पहिले से लोग दिनों वा तिथियों से ही काम लिया करते थे! और जे चांद वा सूय को ग्रहण लगता है ऐसका कारण यह है जैन शास्त्रों में दो प्रकार के सहू वर्णन किए गए हैं जैसे कि - नित्यं राहु" और पर्व राहु नित्यराहु तो चांद के साथ सदैव काल रहता है जो कृष्ण पक्ष में चंद की कला को आवरण करता जाता हे शुक्ल पक्ष में क्लाओं को छोड़ देता है उसी के कारण से कृष्ण पक्ष वा शुक्ल पक्ष कड़े जाते हैं । पर्व गहू चांद वा सूर्य दोनों को ही लग जाते हैं राहु का दिमान कृष्ण रंग का है इस विष उस की छाया उन्हों पर जो पड़ती हैं लोग कहते हैं चदि वा सूर्य को ग्रहण लग गया है किंतु
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