Book Title: Jain Darshan ke Maulik Tattva
Author(s): Nathmalmuni, Chhaganlal Shastri
Publisher: Motilal Bengani Charitable Trust Calcutta
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जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व
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करते हैं । पाचन श्रामाशय की क्रिया का नाम है, श्वासोच्छवास केकड़ों की क्रिया का नाम है, वैसे ही चेतना [ श्रात्मा ] मस्तिष्क की कोष्ठ-क्रिया का नाम है। यह भूत-चैतन्यवाद का एक संक्षिप्त रूप है। श्रात्मवादी इसका निरसन इस प्रकार करते हैं- "चेतना मस्तिष्क के कोष्ठ की क्रिया है" इसमें दूयर्थक क्रिया शब्द का समानार्थक प्रयोग किया गया है । आमाशय की क्रिया और मस्तिष्क की क्रिया में बड़ा भारी अन्तर है। क्रियाशब्द का दो वार का प्रयोग विचार-मेद का द्योतक है। जब हम यह कहते हैं कि पाचन आमाशय की क्रिया का नाम है । तब पाचन और श्रमाशय की क्रिया में भेद नहीं समझते। पर जब मस्तिष्क की कोष्ठ-क्रिया का विचार करते हैं, तब उस क्रिया मात्र को चेतना नहीं समझते। चेतना का विचार करते हैं तब मस्तिष्क की कोष्ठ-क्रिया का किसी प्रकार का ध्यान नहीं श्राता । ये दोनों घटनाएँ सर्वथा विभिन्न है। पाचन से श्रामाशय की क्रिया का बोध हो आता है और आमाशय की क्रिया से पाचन का । पाचन और आमाशय की क्रियाये दो घटनाएं नहीं, एक ही क्रिया के दो नाम है। श्रामाशय, हृदय और मस्तिष्क तथा शरीर के सारे अवयव चेतना-हीन तत्त्व से बने हुए होते हैं। चेतना -हीन से चेतना उत्पन्न नहीं हो सकती। इसी श्राशय को स्पष्ट करते हुए "पादरी बटलर” ने लिखा है- " आप, हाइड्रोजन तत्त्व के मृत परमाणु, ऑक्सीजन तत्त्व के मृत परमाणु, कार्बन तत्त्व के मृत परमाणु, नाइट्रोजन तत्त्व के मृत परमाणु, फासफोरस तत्व के मृत परमाणु तथा बारुद की भाँति उन समस्त तत्त्वों के मृत परमाणु जिनसे मस्तिष्क बना है, ले लीजिए । विचारिए कि ये परमाणु पृथक-पृथक एवं ज्ञान शून्य है, फिर विचारिए कि ये परमाणु साथ-साथ दौड़ रहे हैं और परस्पर मिश्रित होकर जितने प्रकार के स्कन्ध हो सकते हैं, बना रहे हैं। इस शुद्ध यांत्रिक क्रिया का चित्र आप अपने मन में खींच सकते हैं। क्या यह आपकी दृष्टि, स्वप्न या विचार में आ सकता है कि इस यान्त्रिक क्रिया का इन मृत परमाणुओं से बोध, विचार एवं भावनाएँ उत्पन्न हो सकती हैं ? क्या फांसो के खटपटाने से होमर कवि या विलबर्ड लेल की गेंद के खनखनाने से गणित डिफरेनशियल फेल्कुल्स [ Differen tical calculus ] निकल सकता है ! आप मनुष्य की जिज्ञासा का-
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