Book Title: Jain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Author(s): Sagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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3. योगात्मा शरीर से युक्त होने पर चेतना की कायिक, वाचिक और मानसिक-क्रिया
की अवस्था ।
4. उपयोगात्मा- आत्मा की ज्ञानात्मक और अनुभूत्यात्मक शक्तियाँ । यह आत्मा का चेतनात्मक व्यापार है 1
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5. ज्ञानात्मा - चेतना की चिन्तन की शक्ति ।
6. दर्शनात्मा - चेतना की अनुभूत्यात्मक शक्ति ।
7. चरित्रात्मा - चेतना की संकल्पात्मक शक्ति ।
8. वीर्यात्मा- चेतना की क्रियात्मक शक्ति ।
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उपर्युक्त आठ प्रकारों में द्रव्यात्मा, उपयोगात्मा, ज्ञानात्मा और दर्शनात्मा-ये चार तात्त्विक आत्मा के स्वरूप के ही द्योतक हैं, शेष चार कषायात्मा, योगात्मा, चरित्रात्मा और वीर्यात्मा ये चारों आत्मा के अनुभवाधारित स्वरूप के निर्देशक हैं तात्त्विक आत्मा द्रव्य की अपेक्षा से नित्य होती है, यद्यपि उसमें ज्ञानादि की पर्यायें होती रहती हैं। अनुभवाधारित आत्मा - आत्मा की शरीर से युक्त अवस्था है । यह परिवर्तनशील एवं विकारयुक्त होती है। आत्मा के बंधन का प्रश्न भी इसी अनुभवाधारित आत्मा से संबंधित है । विभिन्न दर्शनों में आत्मा - सिद्धांत के संदर्भ में जो पारस्परिक विरोध दिखाई देता है, वह आत्मा के इन दो पक्षों में किसी पक्ष-विशेष पर बल देने के कारण होता है, भारतीय परम्परा में बौद्ध दर्शन ने आत्मा के अनुभवाधारित परिवर्तनशील पक्ष पर अधिक बल दिया, जबकि सांख्य और शांकर वेदान्त ने आत्मा के तात्त्विक स्वरूप पर ही अपनी दृष्टि केन्द्रित की । जैन-दर्शन दोनों ही पक्षों को स्वीकार कर उनके बीच समन्वय का कार्य करता है । विवेक- 5- क्षमता के आधार पर आत्मा के भेद
विवेक - क्षमता की दृष्टि से आत्माएँ दो प्रकार की मानी गई हैं1. समनस्क, 2. अमनस्क । समनस्क आत्माएं वे हैं, जिन्हें विवेक - क्षमता से युक्त मन उपलब्ध हैं, और अमनस्क आत्माएँ वे हैं, जिन्हें ऐसी विवेक - क्षमता से युक्त मन उपलब्ध नहीं है। जहाँ तक धार्मिक जीवन के क्षेत्र का प्रश्न है, समनस्क आत्माएँ ही नैतिक आचरण कर सकती हैं और वे ही धार्मिक साध्य (मुक्ति) की उपलब्धि कर सकती हैं, क्योंकि विवेक-क्षमता से युक्त मन की उपलब्धि होने पर भी आत्मा में शुभाशुभ का विवेक करने की क्षमता होती है, साथ ही इसी विवेक-बुद्धि के आधार पर वे वासनाओं का संयमन भी कर सकती है। जिन आत्माओं में ऐसी विवेक-क्षमता का अभाव है, उनमें संयम की क्षमता का भी अभाव होता है, इसलिए वे आध्यत्मिक प्रगति भी नहीं कर सकती । नैतिक जीवन के लिए आत्मा में विवेक
जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान
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