Book Title: Jain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Author(s): Sagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 674
________________ अधिक रहने की होने के कारण परिवार को भय था कि कहीं बालक के मन पर वैराग्य के संस्कार न जम जाएं? इस प्रकार, किशोरवय में ही आपको गृहस्थ-जीवन और व्यवसाय से जुड़ जाना पड़ा। जो दिन आपके खेलने और खाने के थे, उन्हीं दिनों में आपको पारिवारिक एवं व्यावसायिक-दायित्व का निर्वाह करना पड़ा। यद्यपि आपके मन में अध्ययन के प्रति अदम्य उत्साह था, किन्तु शाजापुर में हाईस्कूल का अभाव तथा पारिवारिक और व्यावसायिक-दायित्वों का बोझ इसमें बाधक था, फिर भी जहाँ चाह होती है, वहाँ कोई-न-कोई राह तो निकल ही आती है। व्यवसाय के साथ-साथ अध्ययन चार वर्ष के अन्तराल के पश्चात् सन् 1952 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से 'व्यापार विशारद' की परीक्षा उत्तीर्ण की और उसके दो वर्ष पश्चात् 1954 में अर्थशास्त्र विषय से साहित्यरत्न की परीक्षा उत्तीर्ण की। उस समय आपने अर्थशास्त्र को सुगम ढंग से अध्ययन करने और स्मृति में रखने का एक चार्ट बनाया था, जिसकी प्रशंसा उस समय के एम.ए. अर्थशास्त्र के छात्रों ने भी की थी। इसी बीच, आपका पत्र-व्यवहार इलाहाबाद के सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री भगवानदास जी केला से हुआ। उन्होंने श्री नरहरि पारिख के मानव अर्थशास्त्र के आधार पर हिन्दी में मानव अर्थशास्त्र लिखने हेतु आपको प्रेरित किया था। तब आप हाईस्कूल भी उत्तीर्ण नहीं थे और आपकी वय मात्र बीस वर्ष की थी। इस समय आपके एक नये मित्र बने - सारंगपुर के श्री मदनमोहन राठी। इसी काल में आपने धार्मिक परीक्षा बोर्ड, पाथर्डी से जैन सिद्धान्त विशारद की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1953 में शाजापुर नगर में एक प्राइवेट हाईस्कूल प्रारम्भ हुआ। यद्यपि अपने व्यावसायिक क्रिया-कलापों में व्यस्त होने के कारण आप उसके छात्र तो नहीं बन सके, किन्तु आपके मन में अध्ययन की प्रसुप्त भावना पुनः जाग्रत हो गई। सन् 1955 में आपने अपने मित्र श्री माणकचन्द्र जैन के साथ स्वाध्यायी छात्र के रूप में हाईस्कूल की परीक्षा दी। वय में माणकचन्द्र आपसे तीन वर्ष छोटे थे, फिर भी आप दोनों में गहरी दोस्ती थी। यद्यपि आप नियमित अध्ययन तो नहीं कर सके, फिर भी अपनी प्रतिभा के बल पर आपने उस परीक्षा में उच्च द्वितीय श्रेणी के अंक प्राप्त किये। अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने के परिणामस्वरूप आपके मन में अध्ययन की भावना पुनः तीव्र हो गयी। इसी अवधि में व्यवसाय के क्षेत्र में भी आपने अच्छी सफलता और कीर्ति अर्जित की। पिताजी की प्रामाणिकता और अपने सौम्य व्यवहार के कारण आप ग्राहकों का मन मोह लिया करते थे। परिणामस्वरूप, आपको व्यावसायिक-क्षेत्र में अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। अल्प वय में ही आपको शाजापुर नगर के सर्राफा एसोसिएशन का मंत्री बना दिया गया। पारिवारिक और व्यावसायिक-दायित्वों का निर्वाह करते सागरमल जीवनवृत्त 661

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