Book Title: Jain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Author(s): Sagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 718
________________ 13. साध्वी प्रीतिदर्शनाश्रीजी, यशोविजयजी का अध्यात्मवाद, जैन विश्वभारती, लाडनूं (राज.) 14. साध्वी ज्योत्सनाजी, रत्नाकरावतारिका में बौद्धदर्शन की समीक्षा, जैन विश्वभारती, लाडनूँ (राज) 15. साध्वी संवेगप्रज्ञाश्रीजी, पंचवस्तुप्रकरणः एक अध्ययन, जैन विश्वभारती, लाडनूं (राज) 16. संजीव जैन, गणधरवाद की दार्शनिक समीक्षा, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन 17. प्रवीणकुमार जोशी, भारतीय चिन्तन में मानवाधिकार एवं कर्तव्य की अवधारणा, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन 18. आशीष नगर, राधातत्त्व एक अनुशीलन, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन 19. साध्वी प्रतिभाजी, जैन श्राविकाओं का जैनधर्म को अवदान, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन 20. साध्वी प्रतिभाजी, आराधना पताका में समाधि मरण की अवधारणा, जैन विश्वविद्यालय, लाडनूँ (राज) 21. साध्वी प्रमुदिताश्रीजी, जैन दर्शन में संज्ञा की अवधारणा, जैन विश्वविद्यालय, लाडनूँ (राज) 22. सुश्री तृप्ति जैन, जैन दर्शन में तनाव प्रबंधन, जैन विश्वविद्यालय, लाडनूं (राज) 23. श्री नवीन बुधोलिया, महात्मा गाँधी का दर्शन, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन इस प्रकार प्रो. सागरमल जैन के अद्यावधि जीवनवृत्त से सहज की विदित होता है कि उनके जीवन में एक अज्ञात प्रेरणा सक्रिय रूप से उनका निर्माण करती रही है। इस दृष्टि से उनके जीवन को प्रायोजित जीवन कहा जा सकता है। ऊपर से देखने पर उनका जीवन एक कर्मयोगी का दिखता है परन्तु अन्दर से देखने पर वे ज्ञान-योग की साधना में रत् दिखाई पड़ते हैं। उनकी आत्म प्रतिमा एक ज्ञानयोगी की है। आजीवन उन्होंने इसी आत्म प्रतिमा को न केवल पल्लवित किया है बल्कि उसका संस्थानिकरण किया है। इसलिए प्रो. सागरमल जैन के सम्पूर्ण जीवन को आत्मक्रियान्वयन की साधना से अभिहित किया जा सकता है। स्वयं को पढ़ाने हेतु शाजापुर में बालकृष्ण नवीन महाविद्यालय की स्थापना में साधकतम सहयोग, काशी में पार्श्वनाथ विद्याश्रम का एक अग्रणी जैनविद्या शोध संस्थान के रूप में पुनरोद्धार और फिर अपने ही गृह नगर शाजापुर में प्राच्य विद्यापीठ की स्थापना - यह सब कुछ उनकी आत्मविस्तारक, कर्मठता को ही प्रमाणित करते हैं। प्रो. सागरमल जैन सागरमल जीवनवृत्त 705

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