Book Title: Jain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Author(s): Sagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
Publisher: Prakrit Bharti Academy

Previous | Next

Page 719
________________ को एक व्यक्ति की वैयक्तिकता में नहीं समझा जा सकता। उन्होंने अपने जीवन की हर एक प्रस्थिति और भूमिकाओं में अपने को ही आत्मार्पित किया है। ज्ञान की निजी साधना से वृहत्तर उनके वाङ्मयी व्यक्तित्व को उन सन्दर्भो में हृदयंगमित किया जा सकता है जहाँ उनके सम्पर्क में आया हुआ प्रत्येक विद्यार्थी और शोधार्थी अपने-अपने तरीके से सागरमल को ही सर्जित करता रहा है। उनके द्वारा स्थापित संस्थाएँ, संयोजित पुस्तकालय और स्वयं उनका वाङ्मयी कृतित्व अनेकानेक सागरमल के प्राज्ञ-पुनर्भव की सम्भावना को ही प्रस्तुत करते हैं। अम्बिकादत्त शर्मा प्रदीप कुमार खरे 00 706 जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान

Loading...

Page Navigation
1 ... 717 718 719 720