Book Title: Jain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Author(s): Sagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 695
________________ 15. वसुदेवहिण्डी : एक अध्ययन, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी 16. सिद्धसेन दिवाकर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डॉ. एस. पी. पाण्डे, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी 17. प्रवचनसारोद्धार की विस्तृत भूमिका, साध्वी हेमप्रभाश्रीजी, प्राकृत भारती, जयपुर 18. प्राकृत एवं संस्कृत ग्रन्थों में गुणस्थान सिद्धान्त, साध्वी दर्शनकलाश्री राज राजेन्द्र प्रकाशन, अहमदाबाद 19. जैन साधना पद्धति में ध्यान, साध्वी प्रियदर्शना, रत्न जैन पुस्तकालय, अहमदनगर 20. ध्यानशतक जिनभद्रगणि, अनु. सुषमा सिंघवी, प्राकृत भारती, जयपुर 21. कायोत्सर्ग, श्री कन्हैयालालजी लोढ़ा, प्राकृत भारती, जयपुर 22. सकारात्मक अहिंसा, श्री कन्हैयालालजी लोढ़ा, प्राकृत भारती, जयपुर 23. पुण्यपापतत्त्व, श्री कन्हैयालालजी लोढ़ा, प्राकृत भारती, जयपुर 24. बन्धतत्त्व की भूमिका, श्री कन्हैयालालजी लोढ़ा, प्राकृत भारती, जयपुर 25. अध्यात्मसार, अनु. साध्वी प्रीति दर्शना श्रीजी, प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर 26. बौद्धदर्शन का समीक्षात्मक अध्ययन, साध्वी ज्योत्सनाश्रीजी म.सा., प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर 27. जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकासक्रम, साध्वी उदितप्रभाश्रीजी, म.सा., प्राकृत भारती, जयपुर 28. जैन गृहस्थ की षोडश संस्कार विधि, साध्वी मोक्षरत्नाश्रीजी, प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर 29. जैन मुनि जीवन के विधि-विधान, साध्वी मोक्षरत्नाश्रीजी, प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर 30. प्रतिष्ठा शान्तिकर्म पौष्टिककर्म एवं बलिविधान, साध्वी मोक्षरत्नाश्रीजी, प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर 31. प्रायश्चित्त आवश्यक, तप एवं पदारोपण विधि, साध्वी मोक्षरत्नाश्रीजी, प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर प्रो. सागरमल जैन के शोध निबन्ध प्रो. सागरमल जैन के शोध निबन्ध दार्शनिक, परामर्श, श्रमण, जिनवाणी, विक्रम, तुलसीप्रज्ञा, अनेकांत, जिनभाषित, जैनम्श्री आदि शोध-पत्रिकाओं के साथ-साथ विभिन्न अभिनन्दन ग्रन्थों, स्मृति ग्रन्थों, स्मारिकाओं आदि में प्रकाशित होते रहे हैं। अनेक ग्रन्थों की भूमिकाएँ भी शोध - आलेख रूप रही हैं । आपके इन जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान 682

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