Book Title: Jain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Author(s): Sagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 696
________________ महत्त्वपूर्ण प्रकीर्ण आलेखों को एकत्रित कर प्रकाशित करने के प्रयत्न हुए, उनमें डॉ. सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ ( Aspects of Jainology vol-6) और सागर जैन विद्या भारती भाग-1 से 7 तक, जो अब जैन धर्म दर्शन एवं संस्कृत के नाम से पुनः प्रकाशित है, प्रमुख हैं। इन दोनों में मिलाकर लगभग 160 आलेख हैं, इसके अतिरिक्त भी अनेक आलेख छूट गये थे, उन्हें भी www.jainealibrary.org के और डॉ. साहब की स्मृति के आधार पर समाहित करने का प्रयत्न किया गया है इन सब आधारों पर उनके शोध आलेखों की संख्या लगभग 300 के आसपास होती है । कोष्ठक ( ) में दिये गये नम्बर www.jainealibrary.org के संदर्भ के हैं, ज्ञातव्य है कि आपके अनेक लेख अनुवादित होकर प्रबुद्ध जीवन (गुजराती) श्रमण (बंगला) Jain studies ( अंग्रेजी) में भी छपे हैं। 1 1. अर्द्धमागधी भाषा का उद्भव एवं विकास, सुमनमुनि अमृतमहोत्सव ग्रन्थ, चेन्नई अद्वैतवाद में आचार दर्शन की सम्भावना : जैन दृष्टि में समीक्षा ( 210030), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी अध्यात्म और विज्ञान (210030), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 2. 3. अध्यात्म बनाम भौतिकवाद, श्रमण, अप्रैल 1990 अर्धमागधी आगम साहित्य : एक विमर्श (2100062) अर्धमागधी आगम साहित्य में समाधिमरण की अवधारणा, श्रमण, 1994 अशोक के अभिलेखा की भाषा मागधी या शौरसेनी (210128), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा. वि. वाराणसी अशोक के अभिलेखा की भाषा मागधी या शौरसेनी (210126), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी अहिंसा एक तुलनात्मक अध्ययन ( 210136), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 10. अहिंसा का अर्थ विस्तार, सम्भावनाएँ, श्रमण जनवरी 1980 11. अहिंसा की सार्वभौमिकता ( 210141), जैन विद्यालय स्मारक ग्रन्थ, कलकत्ता 12. आगम साहित्य में प्रकीर्णकों का स्थान 'महत्व', रचनाकाल एवं रचयिता (210161), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 13. आचाररांग सूत्रः आधुनिक मनोविज्ञान के संदर्भ में, तुलसीप्रज्ञा, खण्ड 6, 4. 5. 6. 7. 8. 9. अंक 9, 1981 14. आचारांगसूत्रः एक विश्लेषण ( 210178 ), सागरमल जैन अभिनन्दन, पा.वि., वाराणसी सागरमल जीवनवृत्त 683

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