Book Title: Jain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Author(s): Sagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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में निकलते थे। जिस समय इस मिडिल स्कूल में आपने प्रवेश लिया था, उस समय द्वितीय महायुद्ध अपनी समाप्ति की ओर था और दिल्ली एवं मुम्बई के मध्य आगरा-मुम्बई रोड़ पर स्थित शाजापुर नगर के उस स्कूल के पास का मैदान सैनिकों का पड़ाव-स्थल था, साथ ही उस समय ग्वालियर राज्य में प्रजामण्डल द्वारा स्वतन्त्रता-आन्दोलन की गतिविधियाँ भी तेज हो गई थीं। बाल्यावस्था की स्वाभाविक चपलतावश कभी आप आगरा-मुम्बई सड़क पर गुजरते हुए गोरे सैनिकों को 'वी फार विक्टोरी' कहकर प्रोत्साहित करते, तो कभी प्रजामण्डल की प्रभात-फेरियों के साथ 'भारतमाता की जय' का उद्घोष करते। बालक सागरमल ने इसी समय अपने मित्रों के साथ पार्श्वनाथ बाल मित्र-मण्डल की स्थापना की। सामाजिक एवं धार्मिक-गतिविधियों के साथ-साथ मण्डल का एक प्रमुख कार्य था – अपने सदस्यों की बीड़ी-सिगरेट आदि दुर्व्यसनों से मुक्त रखना। इसके लिए सदस्यों पर कड़ी चौकसी रखी जाती थी। परिणाम यह हुआ कि यह मित्र-मण्डली व्यसन-मुक्त और धार्मिक-संस्कारों से युक्त रही।
. माध्यमिक परीक्षा (कक्षा 8) उत्तीर्ण करने के पश्चात् परिवार के लोग सब से बड़ा पुत्र होने के कारण आपको व्यवसाय से जोड़ना चाहते थे, परन्तु आपके मन में अध्ययन की तीव्र उत्कण्ठा थी। उस समय शाजापुर नगर ग्वालियर राज्य का जिला मुख्यालय था, फिर भी वहाँ कोई हाईस्कूल नहीं था। आपके अत्यधिक आग्रह पर आपके पिता ने आपकी ससुराल शुजालपुर के एकमात्र हाईस्कूल में अध्ययन के लिए आपको प्रवेश दिलाया, ज्ञातव्य है कि बालक सागरमल की सगाई इसके पूर्व ही चुकी थी। वहाँ प्रवेश के लगभग 15-20 दिन पश्चात् ही आप अस्वस्थ हो गये, फलतः मात्र डेढ़ माह के अल्प प्रवास के पश्चात् पारिवारिक ममता ने आपको वापस शाजापुर बुला लिया। इस प्रकार, आपका अध्ययन स्थगित हो गया और आप अल्पवय में ही सर्राफा के व्यवसाय से जुड़ गये। विवाह एवं पारिवारिक तथा सामाजिक-गतिविधियाँ
आपकी सगाई तो बाल्यकाल में ही हो गयी थी और विवाह की योजना भी बहुत पहले ही बन गई थी, किन्तु आपकी सास के कैंसर की असाध्य बीमारी से ग्रस्त हो जाने और बाद में उनकी मृत्यु हो जाने के कारण विवाह थोड़े समय के लिए टला तो सही, किन्तु 17 वर्ष की वय में प्रवेश करते ही वैशाख शुक्ल त्रयोदशी वि. संवत् 2005 तदनुसार 21 मई 1948 को आपको श्रीमती कमलाबाई के साथ दाम्पत्य-सूत्र में बाँध दिया गया। अल्पवय में आपके विवाह का एक अन्य कारण यह भी था कि आपकी रुचि मातृतुल्या पूज्या साध्वीश्री एवं साधु-संतों के समीप
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जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान

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