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पर एवं नवीन दृष्टिकोण से योगदृष्टिसमुच्चय, योगबिन्दु, योगविंशिका आदि ग्रन्थों की रचना की थी। इस प्रकार हरिभद्र जैन और जैनेतर परम्पराओं के एक ईमानदार अध्येता एवं व्याख्याकार भी हैं। जिस प्रकार प्रशस्तवाद ने दर्शन ग्रन्थों की टीका लिखते समय तद्-तद् दर्शनों के मन्तव्यों का अनुसरण करते हुए तटस्थ भाव रखा, उसी प्रकार हरिभद्र ने भी बौद्ध आदि इतर परम्पराओं का विवेचन करते समय तटस्थ भाव रखा है।
___आचार्य हरिभद्र की दार्शनिक प्रतियों में षड्दर्शन समुच्चय प्रमुख ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में आ.हरिभद्र ने बौद्ध, नैयायिक, सांख्य, जैन, वैशेषिक तथा जैमिनी (मीमांसक) इन छःदर्शनों का उल्लेख किया है। ज्ञातव्य है कि इस षड्दर्शनसमुच्चय में षड दर्शनों में बौद्ध दर्शन को प्रथम स्थान दिया गया है। बौद्धों के आराध्य सुगत का उल्लेख करते हुए चार आर्य सत्यों की बात कही गई। चार आर्य सत्यों के साथ-साथ इसमें पंचस्कन्धों का उल्लेख है और उसके पश्चात् संस्कारों की क्षणिकता को बतलाते हुए यह कहा गया है कि वासना का निरोध होना ही मुक्ति है, साथ ही इसमें बारह धर्म आयतनों और दो प्रमाणों प्रत्यक्ष और अनुमान का भी उल्लेख हुआ है। षड्दर्शनसमुच्चय में बौद्ध धर्म के मूलभूत सिद्धान्तों का निष्पक्ष दृष्टि से प्रतिपादन हुआ है, किन्तु षड्दर्शनसमुच्चय में टीकाकार गुणरत्न ने इनकी जैन दृष्टि से समीक्षा भी प्रस्तुत की।
हरिभद्र का दूसरा ग्रन्थ शास्त्रवार्तासमुच्चय है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि जहाँ षड्दर्शनसमुच्चय में विभिन्न दर्शनों के मन्तव्यों का निष्पक्ष दृष्टि से प्रतिपादन है वहाँ शास्त्रवार्तासमुच्चय में समादर भावपूर्वक समीक्षा एवं समन्वयात्मक निष्कर्ष प्रस्तुत किये गए हैं। इस ग्रन्थ के चतुर्थ और छठवें स्तबक में क्षणिकवाद की समीक्षा है। वहाँ पाचवें स्तबक में विज्ञानवाद और छठवें स्तबक में शून्यवाद की समीक्षा की गई है। इसके अतिरिक्त दसवें सर्वज्ञता प्रतिषेधवाद में तथा ग्यारवहवें स्तबक शब्दार्थ प्रतिषेधवाद में भी बौद्ध मन्तव्यों की समीक्षा की गई है। यद्यपि बौद्ध मन्तव्यों की समीक्षा की गई, किन्तु बुद्ध के प्रति समादरभाव व्यक्त करते हुए बुद्ध ने इन सिद्धान्तों का प्रतिपादन तृष्णा के प्रहाण के लिए किया गया ऐसा उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त अनेकान्तजयपताका के पांचवें आदि अधिकारों में बौद्ध के योगाचार दर्शन की समीक्षा उपलब्ध होती है। अनेकान्तवादप्रवेश में भी अनेकान्त जयपताका के समान ही अनेकान्तवाद को सरल ढंग से स्थापित करने का प्रयत्न किया गया है। इस ग्रन्थ में भी बौद्ध ग्रन्थों के उल्लेख एवं समीक्षा उपलब्ध होती हैं। इसी क्रम में हरिभद्र के योगदृष्टिसमुच्चय में भी बौद्धों के क्षणिकवाद की समीक्षा
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जैन दर्शन में तत्व और ज्ञान