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उपलब्ध होती है। संक्षेप में हरिभद्र ने बौद्धदर्शन के क्षणिकवाद, विज्ञानवाद, शून्यवाद को ही मुख्य रूप में अपनी समालोचना का विषय बनाया।
किन्तु हरिभद्र के अनुसार क्षणिकवाद, विज्ञानवाद, शून्यवाद मूलतः बाह्यार्थों के प्रति रही हुई व्यक्ति की तृष्णा के उच्छेद के लिए है। बौद्धदर्शन की तत्त्वमीमांसा की अन्य परम्पराओं से समानता और अन्तर
भारतीय चिन्तन में बौद्धदर्शन की तत्त्वमीमांसा और प्रमाणमीमांसा की क्या स्थिति है इसे निम्न बिन्दुओं से समझा जा सकता है -
1. सत् के स्वरूप के सम्बन्ध में जहाँ अद्वैत वेदान्त उसे अपरिणामी या अविकारी मानता है वहाँ बौद्धदर्शन उसे सतत् परिवर्तनशील मानता है, जैन दार्शनिक उसे 'उत्पाद-व्यय-घौव्यात्मक सत्' कहकर दोनों में समन्वय करता है। यहाँ मीमांसक भी जैनों के दृष्टिकोण के समर्थक प्रतीत होते हैं, किन्तु सांख्य अपनी प्रकृति और पुरुष की अवधारणा में पुरूष को कूटस्थ, नित्य और प्रकृति को परिणामी मानते हैं।
2. बौद्ध दार्शनिक जहाँ सत् को क्षणिक कहता है, वहाँ वेदान्त उसे शाश्वत् कहता है। जैन दर्शन बौद्धों के क्षणिकवाद की समीक्षा तो करते हैं, किन्तु वे उसमें पर्यायों की दृष्टि से अनित्यता को भी स्वीकार करते हैं। उनकी दृष्टि से द्रव्य नित्य हैं, किन्तु उसकी पर्यायें अनित्य हैं।
3. बौद्ध के शून्यवाद में तत्त्व को सत्, असत्, उभय और अनुभय-इन चारों विकल्पों से भिन्न शून्य कहा है, जबकि जैनों ने सत्, असत्, उभय और अनुभय चारों विकल्पों से युक्त माना गया है। सत्ता की अनिर्वचनीयता को लेकर प्रायः शून्यवाद और अद्वैतवाद में समानता परिलक्षित होती है, फिर भी जहाँ बौद्धों की अनिर्वचनीयता नकारात्मक है, वहाँ वेदान्त की अनिर्वचनीयता सकारात्मक है। जैनों ने परमसत्ता की इस अनिर्वचनीयता को भी सापेक्ष माना है, वे उसे कथंचित् अवक्तव्य और कथंचित् वक्तव्य मानते हैं। जैनों की अव्यक्तव्यता भाषागत समस्या है, जबकि बौद्धों और वेदान्तियों की अनिर्वचनीयता स्वरूपात्मक है, किन्तु जहाँ बौद्ध उसे निःस्वभाव मानता है, वहाँ वेदान्त अनिर्वचनीयता को सत्ता का स्वरूप लक्षण मानता है।
___4. बौद्ध विज्ञानवाद में क्षणक्षयी चित्त (विज्ञान) को ही परम तत्त्व माना गया है वहाँ जैन दर्शन में आत्मा को महत्त्व देते हुए भी जड़ और चेतन दोनों की स्वतंत्र सत्ता मानी गई है, सांख्यों ने भी पुरूष एवं प्रकृति के रूप में इस द्वैतवाद को स्वीकारा है। न्याय वैशेषिक और मीमांसक बहुतत्त्ववादी है किन्तु वे भी चित्
बौद्ध धर्मदर्शन
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