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मिले हैं। वहाँ खुदाई में कुछ ऐसी सीले मिली हैं, जिन पर योगी ध्यानमुद्रा में बैठे हुए या खड़े हुए दिखाये गये हैं। इससे प्रमाणित होता है कि उस काल में ध्यान
और योग का प्रचलन था। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की संस्कृति भारत की श्रमणसंस्कृति की प्रारम्भिक स्थिति कही जा सकती है। यह स्पष्ट है कि जब वैदिक पराम्परा में यज्ञ या बलिदान (Sarifies) का प्रचलन था, तब श्रमण-परम्परा ही के लोगों में योग और ध्यान की पद्धति अधिक रुचिकार थी। मेरा विचार है कि यह प्रारम्भिक श्रमण-परम्परा ही कुछ कालोपरान्त विभिन्न शाखाओं में विभाजित हो गई, जैसे जैन, बौद्ध, सांख्य-योग, आजीवक तथा अन्य छोटे-छोटे श्रमण सम्प्रदाय। यद्यपि तत्कालीन उपनिषदीय परम्परा में श्रमण और वैदिक परम्परा के समन्वय का प्रयत्न हुआ था और वर्तमान में प्रचलित पतंजलि की योगपद्धति उसी समन्वय का प्रतिफल है, लेकिन हमें इस तथ्य पर अवश्य ध्यान देना चाहिये कि उसमें परम्परा के लक्षण (Sramanic features) प्रभावीरूप से प्रमुख (Dominating) हैं। आगम पूर्व काल में जैनयोग पर अन्य पद्धतियों का प्रभाव -
इस प्राचीन काल में यानी आगम युग के पूर्व में जैनयोग पर अन्य योग-पद्धतियों के प्रभाव की खोज करना बहुत कठिन है क्योंकि इस काल में हमें योग और ध्यान के किसी एक व्यवस्थित संगठन की जानकारी नहीं मिलती, सिवाय रामपुत्त के, जिनसे स्वयं भगवान बुद्ध ने ध्यान की कुछ पद्धतियाँ सीखी थी। यह जानना भी रुचिकर होगा कि रामपुत्त स्थानांग का उल्लेख कुछ प्राचीन स्तर के जैन ग्रंथों में भी उपलब्ध है - जैसे सूत्रकृतांग (3/62), अंतकृद्दाशांग (10/113) और ऋषिभासित (23)।
मेरा विश्वास है कि वर्तमान की विपश्यना और प्रेक्षाध्यान की पद्धतियाँ भी मूलतः रामपुत्त की ध्यान साधना पद्धति पर ही आधारित है। 2. आगम युग
पारम्परिक रूप से तो यह माना जाता है कि जैनयोग और ध्यान-प्रक्रिया (Meditation Practices) का प्रारम्भ प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से हुआ था। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यौगिक साधना और ध्यान का आरम्भिक उल्लेख आचारांग, सूत्रकृतांग और ऋषिभाषित जैसे प्रारम्भिक जैन आगमों में भी मिलता है। आचारांग के 9वें अध्याय उपधानसूत्र में, भगवान् महावीर द्वारा स्वयं अपनाई गई ध्यान की त्राटक पद्धति का उल्लेख है। सूत्रकृतांग के 6वें अध्याय में प्राचीन प्रेक्षा-ध्यानपद्धति के भी संकेत हैं। उसमें भगवान महावीर को सर्वोत्तम ध्यानीसंत के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उनको वास्तविक धार्मिक प्रक्रियाओं, मन की स्थिरता
जैन धर्मदर्शन
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